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(११) चित्र में लिखित इसके रूप को देखकर जो मच्छित हो जाएगा वही राजा इसका वर होगा, वह सकल अंतःपुर में महादेवी होगी, आप इसमें थोड़ा भी संदेह न करें, इतने में सागर श्रेष्ठी ने भी पूछा कि मेरी लड़की श्रीकांता का पति कौन होगा ? तब सुमति ने कहा कि काले सर्प से डेंसी जाने पर जो इसको उज्जीवित करेगा वही इसका पति होगा, इस प्रकार पूछकर उचित सत्कार करके राजा ने उसे विदा कर दिया, तब मंत्री ने कहा, राजन् ? यह बहुत अच्छा हुआ अब नैमित्तिक के कथनानुसार उद्यम करना चाहिए। राजा ने पूछा, यहाँ अच्छे से अच्छा चित्र कौन बना सकता है ? मतिसागर ने कहा कि इस नगर में सुप्रसिद्ध कमलावती के गुरु सुमित्रसेन का पुत्र चित्रसेन चित्रकला में अत्यंत कुशल है, राजा ने मुझे बुलाया और बहुमानपूर्वक मुझ से कहा कि कमलावती के रूप को चित्रपट पर लिखो, जैसी आपकी आज्ञा यह कहकर मैंने सुंदर वर्णों से इस चित्र को लिखकर राजा को दिखलाया, राजा इस सुंदर चित्र को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए और उसने मेरी बड़ी प्रशंसा की। फिर राजा ने मुझे आदेश दिया कि तुम चित्रकार के वेश में इस चित्र को लेकर सब राजाओं को दिखाओ, चित्र को देखकर जो राजा मूच्छित हो जाए उसका नाम शीघ्र मुझे आकर कहो ताकि खूब धूमधाम के साथ उसके साथ कमलावती का विवाह करूँ, राजा के द्वारा ऐसा कहे जाने पर उनके चरणकमल को प्रणाम करके कुछ परिजन के साथ कुशाग्रपुर से निकला, सुग्रीव कीर्तिवर्धन आदि राजाओं को यह चित्र बताया लेकिन मेरा मनोरथ सिद्ध नहीं हुआ, आज मैं यहाँ आया और इस चित्रपट को देखकर आपको मूर्छा आई है, हे नरनाथ ? " आज मेरे स्वामी का मनोरथ सिद्ध हुआ" यह सोचकर तथा