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प्रतापी पुत्र और अत्यंत रूपवती कमलावती नाम की पुत्री है, एक समय राजा ने अपने पुत्र नरवाहन को अपना राज्य देकर इस प्रकार कहा कि अपनी बहन कमलावती को किसी योग्य वर के साथ विवाह कर देना । पुत्र को ऐसा कहकर संवेगी राजा ने सद्गुरु के पास संसार का विनाश करनेवाली भागवती दीक्षा विधिपूर्वक ले ली, नरवाहन राजा अपने शत्रुओं को वश में करके अच्छी तरह राज्य का पालन करता है, कमलावती भी कन्यान्तःपुर में सुखपूर्वक रह रही है।
उसी नगर में सागर नाम का एक वणिक रहता है, वह राजा का बालसखा है और जिनवचन में अत्यंत अनुरक्त है, उसके अत्यंत प्रिय शीलसंपन्ना श्रीमती नाम की भार्या श्रीदत्त नाम का पुत्र और श्रीकान्ता नाम की पुत्री है, श्रीकांता प्रति दिन कमलावती के पास आती है, उन दोनों में अत्यंत प्रेम हो गया। सर्व कलाओं में कुशल सुमित्रसेन नामक आचार्य के पास स्त्रीजनोचित सकल कलाएँ बचपन में ही उन्हें सिखाई गईं। राजपुत्री के साथ चित्रादि अनेक प्रकार की क्रीड़ा करती हुई श्रीकांता विकाल समय में अपने घर आने लगी, इस प्रकार बहुत समय बीतने पर दोनों कन्याएँ देवताओं के लिए भी वांछनीय प्रथम यौवन को प्राप्त हुईं, एक समय राजा मंत्री मति सागर और सागर श्रेष्ठी के साथ सभामण्डप में बैठा था। इतने में अलंकारों से अलंकृत अपनी सहेलियों के साथ कंदुक क्रीड़ा करती हुई कमलावती वहाँ पहुंच गई। राजा ने प्रेम से बहन को अपनी गोद में बैठाया और उसके सौंदर्य तथा बढ़ते यौवन को देखकर मंत्री मतिसागर से कहा कि दीक्षा लेते समय पिताजी ने कहा था कि अपनी बहन कमलावती को योग्य