Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१७२ १८ प्रथम असंख्यात
प्रथम संख्यात, २८ फिर पृथक् पृथक्
फिर पूर्वमें पृथक् १७४ ३ थला परूवणा
थूलपवणं पृष्ठ १७६ के आगे १६६ से १७६ १७७ से १८४ पृष्ठ तक पढ़िये तक के स्थानमें ५ "संदिट्ठीए
संदिट्टीए ६ णवखंडयाम
णवखंडायाम४ एदस्स
एदस्स , ११ खेत्तं पादेदूण
खेत्तं [पादेदण , -खंडायाम' तच्छेदूण -खंडायामं खे] तच्छेद्ण १६३ १६ अनन्तवें भागसे अधिक अनन्तभागवृद्धि ,,,, असंख्यातवें भागसे अधिक असंख्यातभागवृद्धिका १६४ २७ असंख्यातवें भागसे अधिक असंख्यातमागवृद्धि ,,, संख्यातवें भागसे अधिक संख्यातभागवृद्धि का १६५ २१ संख्यातवें भागसे अधिक संख्यातभागवृद्धि ,, ,, संख्यातगुणा अधिक संख्यातगुणवृद्धिका , २७ संख्यातगुणा अधिक संख्यातगुणवृद्धि ,,, असंख्यातगुणा अधिक असंख्यातगुणवृद्धिका , ३१ असंख्यातगुणा अधिक असंख्यातगुणवृद्धि " , अनन्तगुणा अधिक अनन्तगुणवृद्धिका १६७ २२ जाकर संख्यात
जाकर (१६+४) संख्यात२०२ १ रूवेण कंदएण'
रूवेण एगकंदएण' , १६ और काण्डक
और एक काण्डक १ अणुवहिभावेण'
अणुवट्टिभावण' " ७-परूवणासंबद्धा त्ति ? -परूवणा णासंबद्धा वि। २१० २६ अनन्तभागवृद्धि
अनन्तगुणवृद्धि २१३ २८ प्रकार न होकर
प्रकार होकर २१६ १५ संख्यातवृद्धिस्थान
संख्यातभागवृद्धिस्थान २१६५ कणि
काणि २२२ ३३ भावविधान ११३-१४ इति पाठः। भावविधान २०४, २२६ २७ चरम
त्रिचरम २९८ १८ अधस्तन अष्टांकके
अधस्तन ऊर्वकके २३१ २ एगं चेव
तमेगं चेव
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