________________
षड्दर्शन समुच्चय, भाग-१, भूमिका
कलिकाल सर्वज्ञ पू.आ.भ. श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा ने वीतराग स्तोत्र नामके ग्रंथ में आठवें प्रकाश में जैनदर्शन के स्याद्वाद सिद्धांत की प्रस्थापना की है। उसके उपर न्यायाचार्य श्री यशोविजयजी महाराजाने "स्याद्वाद रहस्य" नामके महान दार्शनिक ग्रंथ की रचना की है । पू. आ.भी. श्री वादिदेवसूरिजी ने " प्रमाणनयतत्त्वालोक" ग्रंथ की रचना की है, उसके उपर " रत्नाकरावतारिका" नामकी बृहद्वृत्ति की रचना हुई हैं । न्यायाचार्य श्री यशोविजयजी महाराजाने वादमाला १-२-३, न्यायालोक, अनेकांत प्रवेशक आदि अनेक दार्शनिक ग्रंथो की रचना की हैं, उसकी विषयसूची परिशिष्ट में संग्रहित की गई है । स्याद्वाद मंजरी, जैनतर्कभाषा, प्रमाण मीमांसा, न्यायावतारसूत्र - वार्तिक, श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरिजी कृत द्वात्रिंशत् - द्वात्रिंशिका, श्री हरिभद्रसूरिजी कृत श्री अनेकांत जयपताका आदि अनेक दार्शनिक ग्रंथ जैनदर्शन के " स्याद्वाद" सिद्धांत की प्रस्थापना करने में अपना अनूठा स्थान रखते हैं ।
७१
जैनदर्शन के साहित्य के विषय में विशेष विचारणा परिशिष्ट विभाग के उपर छोडकर अब प्रस्तुत ग्रंथ के क्रमानुसार वैशेषिक दर्शन के देवतादि विषयो के परिचय प्राप्त करेंगे ।
वैशेषिक दर्शन :
श्री कणाद ऋषि प्रणीत दर्शन वैशेषिक दर्शन है । यह नाम विशेष शब्द उपर से निष्पन्न हुआ है । भिन्न भिन्न ग्रंथकार 'विशेष' शब्द के अलग-अलग अर्थ बताकर “वैशेषिक" नाम का अर्थघटन भिन्न-भिन्न तरीके से करते हैं।
प्रस्तुत ग्रंथ में कहा हैं कि, विशेष अर्थात् वैशेषिक दर्शन ने स्वीकार किया हुआ “विशेष" नामका स्वतंत्र पदार्थ। वह विशेष नाम के स्वतंत्र पदार्थ को मानते हैं इसलिए उसका नाम वैशेषिक पडा हैं । अन्य ग्रंथकारों के अभिप्राय टिप्पणी में दिये हैं । (१४१)
देवता : वैशेषिक दर्शन नैयायिको की तरह ही ईश्वर को जगत के कर्ता, भर्ता, हन्ता, एक और नित्य मानता हैं । १४२) तत्त्वमीमांसा :
वैशेषिक दर्शन ने छः तत्त्वो का स्वीकार किया हैं । द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय । (१४३)
(१) द्रव्य : जो गुणवत्, कर्मवत् और समवायि कारण ( उपादान कारण) हो उसे द्रव्य कहा जाता हैं । (१४४) द्रव्य नौ प्रकार के हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, काल, दिशा, आत्मा और मन । ये नौ द्रव्य कोई-न-कोई कार्य
समवायी कारण हैं तथा क्रिया और गुण से युक्त है । इन नौ द्रव्यो में से प्रथम चार के दो प्रकार हैं । मूल द्रव्य और कार्य द्रव्य । परमाणु मूल द्रव्य है और अवयवी वह कार्य द्रव्य हैं I
वैशेषिको के मतानुसार अंधकार और छाया स्वतंत्र द्रव्य नहीं है । परन्तु तेजोद्रव्य के अभावरूप हैं । पृथ्वी कठोर होती हैं और मिट्टी, पाषाण, वनस्पति रूप से होती हैं । पानी सरोवर, समुद्र, नदी आदि स्वरूप से होता हैं । अग्नि के चार प्रकार हैं- भौम, दिव्य, औदर्य और आकरज । पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु के अनेक प्रकार दिखाई देते हैं । आकाश नित्य, एक, अमूर्त और विभु द्रव्य है । (विभु अर्थात् विश्व व्यापक), आकाश शब्दरूप लिंग द्वारा अनुमेय है।
141. नित्यद्रव्यवृत्तयोऽन्त्या (विशेषाः), विशेषा एव वैशेषिकं विनयादिभ्यः स्वार्थे इकण् । तद् वैशेषिकं विदन्त्यधीयते वा तत्त्यधीत इत्यणि वैशेषिकाः । तेषामिदं वैशेषिकम् (षड्. समु. ३ टीका) विशेषो व्यवच्छेदः तत्त्वनिश्चयः, तेन व्यवहरतीत्यर्थः । (किरणावली) द्रव्यगुणकर्मसामान्यविशेषसमवायात्मकैः पदार्थविशेषैर्व्यवहरन्तीति वैशेषिका: । (धर्मोत्तरप्रदीप - पृ. २४० ) 142. देवताविषयो भेदो नास्ति नैयायिकैः समम्. । (षड्. समु. श्लो - ५९ ) । 143. षड्. समु. ६० । 144. क्रियागुणवत् समवायिकारणमिति द्रव्यलक्षणम् (वै.सू. १-१-१५) ।
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org