Book Title: Shaddarshan Samucchaya Part 01
Author(s): Sanyamkirtivijay
Publisher: Sanmarg Prakashak

View full book text
Previous | Next

Page 700
________________ षड्दर्शन समुच्चय भाग-१, परिशिष्ट-८, व्याख्या की शैली का परिचय ५८७ के वहां, जहां, यहां इत्यादि अर्थ न करते हुए, आगे की पंक्तिओ में जिस विषय का अनुसंधान हो उसे ढुंढकर अर्थ करना। (७२) कोई टीकाकार टीका का प्रांरभ श्लोक के प्रथम शब्द से ही करते है । क्रमशः सभी शब्दो की टीका करते जाते है और परस्पर अन्वय जोडते जाते है। कुछ टीकाकार श्लोक के भावार्थ के अनुसार से टीका का प्रारंभ करते दिखाई देते है। कुछ टीकाकार श्लोक या गाथागत शब्दो की ही केवल टीका करके रख देते है। विशेषतया परस्पर अन्वय जोडते नहीं है। (७३) टीकाकार श्लोक के प्रत्येक शब्दो की व्याख्या करते करते श्लोकगत उस उस शब्दो का परस्पर अन्वय जोडने के लिए "किमित्याह" "कथमभिधीयते इत्याह" एवम्भूतस्यापि सतः “किमित्याह" "किंविशिष्टं' इत्यादि पदो को रखकर श्रोता को आगे-आगे के शब्दो के भावार्थ की ओर अभिमुख करते होते है। कई बार प्रश्नो को उपस्थित करके, उसका रहस्यार्थ श्लोकगत शब्दो का अर्थ करके बताते होते है। (७४) टीकाकार विशेष्य के एक से ज्यादा विशेषणो को क्रमशः विशेष्य के साथ अन्वय करते वक्त "किंविशिष्टः" "अयमेव विशिष्यते" "किं भूतम्" "कथंभूतम्" इत्यादि पदो को रखकर अन्वय जोडते होते है। इस प्रकार सामान्य से टीका की शैली बताई । विशेष से टीका खोलने की पद्धति जानकारो के पास से जान ले। सामान्य से बताई गई टीका की शैली का परिचय पाकर सब कोई टीका के पठन में प्रवेश करके, टीकागत पदार्थो को जीवन में परिणत करके जल्द से जल्द भवसागर से पार उतरे यही एक की एक सदा के लिए की शुभाभिलाषा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712