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षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, श्लोक - २२, नैयायिक दर्शन
अनुमान का उदाहरण इस अनुसार है।
जैसे कि, वैसे प्रकार का शीघ्र प्रवाह, फल-फेनादि का बहना, दोनो किनारो को व्याप्त आदि धर्म से विशिष्ट जो नदी की बाढ़ है, उस लिंग से उपरीतनवास में (उपर के गांव या प्रदेश में) बरसात हुई है, इस अनुसार ज्ञान होता है । यहाँ अनुमान प्रयोग पहले की तरह जानना । वह इस अनुसार है - "उपरिवृष्टि मद्देशसंबन्धिनी नदी शीघ्रतरस्रोतत्वे फलफेनसमूहकाष्ठादिवहनत्वे च सति पूर्णत्वात्, तदन्यनदीवत् । ॥२१॥
क्रमप्राप्त सामान्यतोदृष्ट अनुमान की व्याख्या करते हुए ग्रंथकारश्री कहते है कि - ___(मू. श्लोक.) यञ्च सामान्यतोदृष्टं तदेवं गतिपूर्विका ।
पुंसि देशान्तरप्राप्तिर्यथा सूर्येऽपि सा तथा ।। २२ ।। श्लोकार्थ : उपरांत, जो (कार्य-कारणभाव से अन्यत्र सामान्यतः अविनाभाव के द्वारा दिखता लिंग) है, वह सामान्यतोदृष्ट अनुमान है। जैसे कि, पुरुष एक जगह से दूसरी जगह पहुँचता है, वह गतिपूर्वक होता है, वैसे सूर्य भी एक जगह से दूसरी जगह गतिपूर्वक पहुँचता है। ॥२२॥ ___ व्याख्या-चः पुनरर्थे, यत्पुनः कार्यकारणभावादन्यत्र सामान्यतोऽविनाभावबलेन दृष्टं लिङ्गं सामान्यतोदृष्टं, तदेवम् । कथमित्याह-यथा पुंस्येकस्माद्देशाद्देशान्तरप्राप्तिर्गतिपूर्विका तथा सूर्येऽपि सा देशान्तरप्राप्तिस्तथा गतिपूर्विका । अत्र देशान्तरप्राप्तिशब्देन देशान्तरदर्शनं ज्ञेयम् । अन्यथा देशान्तरप्राप्तेर्गतिकार्यत्वेन शेषवतोऽनुमानादस्य भेदो न स्यात् । यद्यपि गगने संचरतः सूर्यस्य नेत्रावलोकप्रसराभावेन गतिर्नोपलभ्यते, तथाप्युदयाचलात्कालान्तरेऽस्ताचलचूलिकादौ तद्दर्शनं गतिं गमयति । प्रयोगः पुनः पूर्वमुक्त एव । अथवा देशान्तरप्राप्तेर्गतिकार्यत्वं लोको न प्रत्येतीति इदमुदाहरणं कार्यकारणभावाविवक्षयात्रोपन्यस्तम् । प्रयोगस्त्वेवम्, सूर्यस्य देशान्तरप्राप्तिर्गतिपूर्विका देशान्तरप्राप्तित्वाद्देवदत्तदेशान्तरप्राप्तिवत् ।।२२।।
टीकाका भावानुवाद : ___ "च" पुनः अर्थ में है। उपरांत कार्यकारण भाव से अन्यत्र सामान्यतः अविनाभाव के बल से जो लिंग देखा जाये, उसे सामान्यतोदृष्ट अनुमान कहा जाता है । जैसे, पुरुष की एकदेश से दूसरे देश की प्राप्ति गतिपूर्वक होती है। वैसे सूर्य में भी देशान्तरप्राप्ति गतिपूर्वक होती है।
मतलब यह है कि, पुरुष की देशान्तरप्राप्ति गति द्वारा है। ऐसा देखने के बाद सूर्य की भी देशान्तरप्राप्ति गति के द्वारा होती है। ऐसा जो अनुमान करना वह सामान्यतोदृष्ट अनुमान कहा जाता है।
यहाँ देशान्तरप्राप्ति शब्द से देशान्तर का दर्शन जानना, नहि तो देशान्तरप्राप्तिरुप कार्य गतिरुप कारण का कार्य होने से (कार्य से कारण के अनुमान (ज्ञान) रुप) शेषवत् अनुमान से इस सामान्यतोदृष्ट अनुमान में
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