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षड्दर्शन समुच्चय भाग-१, परिशिष्ट-४, जैन दर्शन का ग्रंथकलाप
५१५ परिचय : (१) श्री ज्ञानसागरसूरिजी म. विरचित ७८८५ श्लोक प्रमाण अवचूरि, (२) मलधारी श्री हेमचंद्रसूरिजी म. कृत ६४४० श्लोक प्रमाण टिप्पन, (३) मलधारी श्री हेमचंद्रसूरिजी कृत २८००० श्लोक प्रमाण विशेषावश्यक वृत्ति, (४) मलधारी श्री हेमचंद्रसूरिजी कृत ९००० श्लोक प्रमाण विशेषावश्यक वृत्ति, (५) श्रीमाणिक्यशेखरगणि विरचित ११७५० श्लोक प्रमाण दिपीका टीका, (६) श्री पूर्वाचार्यजी विरचित १४००० श्लोक प्रमाण वृत्ति । इस सूत्र में मूल १३५ श्लोक प्रमाण है ।
२. श्री दशवैकालिक सूत्र (४१) : यह आगम संक्षिप्त रुप से साधुचर्या को बतानेवाला हैं । वैराग्य-संयम में स्थिर होने के लिए यह आगम बहोत ही महत्त्व रखता है । चौदह पूर्वधारी श्री शय्यंभव स्वामीजी ने अपने संसारी पुत्र मनक को दीक्षा देने के बाद छ: महिने की छोटी अवधि की आयु जानकर उसकी आराधना की शुद्धि के लिए चौदह पूर्व में से गाथाओं एकठ्ठी करके इस आगम की संकलना की ।
इस आगम के दस अध्ययन में से चौथा अध्ययन आत्मप्रवाद नामके सातवें पूर्व में से, पाँचवा अध्ययन कर्मप्रवाद नाम के आठवें पूर्व में से, सातवां अध्ययन सत्यप्रवाद नाम के छठे पूर्व में से, बाकी के १-२-२-३-८-९-१० अध्ययन प्रत्याख्यान प्रवाद नाम के नौंवें पूर्व में से संकलित किया गया हैं ।
इस आगम में नीचे की बाते हैं : माधुकरी वृत्ति, साधु को न करने लायक ५२ बाते, जीवनिकाय और महाव्रतो का स्वरूप, आत्मोन्नति के सोपान, भाषा शुद्धि, गोचरीचर्या के नियम, श्रमण के उत्तम गुण, गुरु के प्रति बहुमान का शिक्षण, चार प्रकार की समाधि, आदर्श श्रमणत्व आदि ।
परिचय : इस आगम के उपर दस अध्ययन है और दो चूलिकायें है । इसके उपर उपलब्ध साहित्य नीचे बताये अनुसार है । (१) पू.आ.भ. श्री भद्रबाहुस्वामी विरचित ५५० श्लोक प्रमाण नियुक्ति, (२) पू.श्री पूर्वाचार्यजी कृत ६३ गाथा प्रमाण भाष्य, (३) पू.आ.श्री हरिभद्रसूरि म. कृत ७००० श्लोक प्रमाण बृहद् वृत्ति, (४) श्री जिनदासगणि कृत ७००० श्लोक प्रमाण चूर्णि, (५) श्री अगत्स्यसिंह गणि विरचित ५००० श्लोक प्रमाण चूर्णि, (६) श्री तिलकाचार्य कृत ७००० श्लोक प्रमाण वृत्ति, (७) पू.आ.श्री सुमतिसूरिजी कृत २६०० श्लोक प्रमाण लघुवृत्ति, (८) अंचल गच्छीय श्री विनय हंसगणि विरचित २१०० श्लोक प्रमाण लघुवृत्ति, (९) श्री शांतिदेवगणि कृत अवचूरि, इस सूत्र में मूल ८३५ श्लोक प्रमाण हैं ।
३. श्री उत्तराध्ययन सूत्र (४२) : इस आगम में प्रभु महावीर की अंतिम देशना के सुभाषित, मार्मिक उपदेश आदि का संकलन हैं । मुख्य बाते नीचे बताये अनुसार हैं ।
२२ परिषहो का स्वरूप, धर्म के साधनो की दुर्लभता, प्रमाद स्वरूप, मरण के भेद, ब्रह्मचर्य, पापश्रमण की रुपरेखा, सञ्चा ब्राह्मणत्व, साधु जीवन का निष्कर्ष, १० प्रकार की समाचारी, मोक्षमार्ग का निरुपण, संवेग आदि महत्त्व की ७३ चीजे, तप का वर्णन, कर्म का स्वरूप, लेश्या, जीव-अजीव का स्वरूप आदि ।
परिचय : इस आगम में ३६ अध्ययन है । मूल २००० श्लोक प्रमाण है । नीचे बताये अनुसार साहित्य उपलब्ध हैं।
(१) ६०० श्लोक (गाथा) प्रमाण नियुक्ति, (२) श्री जिनदासगणि कृत ५८५० श्लोक प्रमाण चूर्णि, (३) श्री शांतिसूरि कृत २६००० श्लोक प्रमाण टीका, (४) पू.आ.भ. श्री नेमिचंदसूरिजी विरचित १४००० श्लोक प्रमाण टीका, (५) पू.श्री भावविजयगाणजी कृत १४२२५ श्लोक प्रमाण वृत्ति, (६) पू.कमल संयमोपाध्याय कृत १४००० श्लोक प्रमाण वृत्ति, (७) अंचलगच्छीय श्री कीर्तिवल्लभगणि विरचित ८२६५ श्लोक प्रमाण वृत्ति, (८) अंचलगच्छीय
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