Book Title: Shaddarshan Samucchaya Part 01
Author(s): Sanyamkirtivijay
Publisher: Sanmarg Prakashak

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Page 632
________________ षड्दर्शन समुच्चय भाग-१, परिशिष्ट- ४, जैन दर्शन का ग्रंथकलाप ५१९ साधुओं के दैनिक आचार का वर्णन इस ग्रन्थ में हैं । (५०) यतिलक्षणसमुच्चय : इस ग्रन्थ में भाव साधुता के लक्षणों का वर्णन हैं । (५१) वादमाला (१)- इस में (१) चित्ररूप विचार, (२) लिङ्गोपहितलैङ्गिकभान, (३) द्रव्यनाशहेतुताविचार, (४) सुवर्णातैजसत्व, (५) अन्धकारद्रव्यत्व, (६) वायुस्पार्शनप्रत्यक्ष, (७) शब्दानित्यत्व (इन, ७) वादों का निरूपण हैं। (५२) वादमाला (२) - इस में (१) स्वत्ववाद, (२) सन्निकर्षवाद, इन दो वादो को निरूपण हैं । (५३) वादमाला (३) - इस में (१) वस्तुलक्षण विवेचन, (२) सामान्यवाद, (३) विशेषवाद, (४) इन्द्रियवाद, (५) अतिरिक्तशक्तिवाद और (६) अदृष्टवाद, इन छ वादों का निरूपण हैं । (५४) विजयप्रभसूरिस्वाध्याय : इस में गच्छनायक श्री विजयप्रभसूरिजी की तर्कगर्भित स्तुति की गई हैं । (५५) विषयतावाद : इस में विषयता, उद्देश्यता, आपाद्यता आदि का निरूपण है । (५६) सिद्धसहस्रनामकोश : सिद्ध भगवान के १००८ नाम के संग्रह इस ग्रंथ में हैं । (५७) स्याद्वाद रहस्य पत्र : ‘खंभात' नगर के पण्डित गोपाल सरस्वती आदि पण्डितवर्ग पर प्रेषित पत्र है, जिस में संक्षेप से 'स्याद्वाद' समर्थक युक्तियाँ का प्रतिपादन है । (५८) स्तोत्रावली: इस में आदीश्वर, पार्श्वनाथ और महावीरस्वामी भगवान के विविध ८ स्तोत्र हैं । अनुपलब्ध-संकेत प्राप्त अन्यग्रन्थ : (५९) अध्यात्मबिंदु, (६०) अध्यात्मोपदेश, (६१) अनेकान्तवादप्रवेश, (६२) अलंकारचूडामणि टीका, (६३) आलोकहेतुतावाद, (६४) छन्दश्चूडामणि टीका, (६५) ज्ञानसार अवचूर्णि (६६) तत्त्वालोक विवरण, (६७) त्रिसूत्र्यालोक, (६८) द्रव्यालोक, (६९) न्यायवादार्थ, ( ७० ) प्रमारहस्य, (७१) मंगलवाद, (७२) वादरहस्य, (७३) वादार्णव, (७४) विधिवाद, (७५) वेदान्त निर्णय, (७६) वेदान्तविवेक सर्वस्व, (७७) शठप्रकरण, (७८) श्रीपूज्यलेख, (७९) सिद्धान्ततर्क परिष्कार प्रकीर्ण : संस्कृत-प्राकृत भाषा के अलावा श्रीमद् महोपाध्यायजी की गूर्जर भाषा में भी अनेक लोकभोग्य स्तवन, सज्झाय, रास, पूजा, टबा इत्यादि कृतियाँ है, जिसका बहुभाग 'गूर्जर साहित्य संग्रह' भाग १ में, तथा भाग २ में है और 'द्रव्यगुणपर्याय का रास' प्रसिद्ध हो चूका हैं । • पू. जैनाचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी म. के ग्रंथकलाप : समर्थ शास्त्रकार शिरोमणी पू. आचार्य प्रवरश्रीने १४४४ ग्रंथों की रचना की थी । परन्तु वर्तमान में वे सभी ग्रंथो उपलब्ध नहीं हैं । संप्राप्त ग्रंथराशी में निम्न ग्रंथ समाविष्ट हैं : १. अनुयोगद्वारसूत्रवृत्ति, २. अनेकान्तजयपताका (स्वोपज्ञ टीका सहित), ३. अनेकान्तप्रघट्ट, ४. अनेकान्तवाद प्रवेश, ५. अष्टक प्रकरण, ६. आवश्यकनिर्युक्ति-लघुटीका, ७. आवश्यकनिर्युक्ति- बृहट्टीका, ८. उपदेशपद, ९. कथाकोश, १०. कर्मस्तववृत्ति, ११. कुलक, १२. क्षेत्रसमासवृत्ति, १३. चतुर्विंशतिस्तुतिसटीक, १४. चैत्यवंदनभाष्य, १५. चैत्यवंदनवृत्तिललितविस्तरा, १६. जीवाभिगम - लघुवृत्ति, १७. ज्ञानपञ्चकविवरण, १८. ज्ञानादित्यप्रकरण, १९. दशवैकालिक अवचूरि, २०. दशवैकालिकबृहट्टीका, २१. देवेन्द्रनरकेन्द्रप्रकरण, २२. द्विजवदनचपेटा (वेदांकुश), २३. धर्मबिन्दु, २४. धर्मलाभसिद्धि, २५. धर्मसंग्रहणी, २६. धर्मसारमूलटीका, २७. धूर्ताख्यान, २८. नंदीवृत्ति, २९. न्यायप्रवेशसूत्रवृत्ति, ३०. न्यायविनिश्चय, ३१. न्यायामृततरंगिणी, ३२. न्यायावतारवृत्ति, ३३. पंचनिर्ग्रन्थी, ३४. पंचलिंगी, ३५. पंचवस्तु सटीक, ३६. पंचसंग्रह, ३७. पंचसूत्रवृत्ति, ३८. पंचस्थानक, ३९. पंचाशक, ४०. परलोकसिद्धि, ४१. पिण्डनिर्युक्तिवृत्ति (अपूर्ण), ४२. प्रज्ञापनाप्रदेशव्याख्या, ४३. प्रतिष्ठाकल्प, ४४. बृहन्मिथ्यात्वमंथन, ४५. मुनिपतिचरित्र, ४६. यतिदिनकृत्य, ४७. यशोधरचरित्र, ४८. योगदृष्टिसमुच्चय, ४९. योगबिन्दु, ५०. योगशतक, ५१. लग्नशुद्धि (लग्नकुण्डलि), Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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