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षड्दर्शन समुच्चय भाग-१, परिशिष्ट-१, वेदांतदर्शन
वेदांत के भिन्न-भिन्न संप्रदायो में श्रीशंकराचार्य का मत अत्यधिक प्रचलित हैं और बौद्धिक उच्चवर्ग की अभिरुचि को असरकर्ता बना होने से वेदांत अर्थात् 'शांकर-वेदांत" ही कहा माना जाता हैं। श्रीबादरायणऋषि रचित ब्रह्मसूत्र में ही कुछ पूर्वाचार्य श्रीआत्रेय, श्रीआश्मरथ्य, श्रीऔडुलोमी, श्रीकाष्र्णाजिनि, श्रीकाशकृत्स्त्र, श्रीजैमिनि, श्रीबादरी आदि वेदांती आचार्यो का नामोल्लेख आता हैं। इन सबका प्रभाव बाद में विकसित हुए वेदांत के उपर पड़ा हुआ होना चाहिए । तदुपरांत, शांकरभाष्य में उल्लेख पाये हुए आचार्य श्रीभर्तृमित्र, श्रीभर्तृप्रपंच, श्रीबोधायन, श्रीउपवर्ष, श्रीब्रह्मानंदी, श्रीद्रमिल या श्रीद्रविड, श्रीभारुयि आदि का कुछ प्रभाव श्रीशंकराचार्य के मत के उपर पडा होगा ऐसा भी स्वीकार करना पड़ेगा।
(यह परिशिष्ट के संकलन में (१) नाग प्रकाशन द्वारा प्रकाशित वेदान्त सिद्धांत मुक्तावली, (२) नगीन जी. शाह विवेचित अविद्याविचार, (३) श्री बलदेव उपाध्याय कृत भारतीय दर्शन और (४) सस्तुं साहित्य वर्धक कार्यालय द्वारा प्रकाशित सर्व वेदान्त सिद्धांतसार संग्रह एवं दृग-दृश्य विवेक : ये पुस्तकों का सहयोग लिया गया है।
शुद्ध चैतन्य अज्ञान (शुद्ध चैतन्य)=अज्ञानोपहित चैतन्य
उपादानकारण - निमित्तकारण
समष्टि-अज्ञान (अथवा)
व्यष्टि-अज्ञान (अथवा) कारणशरीर (अथवा)
कारणशरीर (अथवा) आनन्दमय कोष (अथवा)
आनंदमय कोष (अथवा) सुषुप्ति (अथवा)
सुषुप्ति (अथवा) स्थूलसूक्ष्मप्रपंचलयस्थान (अथवा)
स्थूल सूक्ष्म प्रपंचलय स्थान (अथवा) ईश्वर (शुद्ध सत्त्वगुण प्रधान)
प्राज्ञ (मलिन सत्त्वगुण प्रधान) तमोगुण प्रधान विक्षेपशक्ति युक्त अज्ञानोपहित चैतन्य लिंगशरीर
स्थूल या पंचीकृतभूत लिंगशरीर अथवा स्थूल या पंचीकृतभूत (५ ज्ञानेन्द्रिय, बुद्धि, मन
तैजस अथवा ७ ऊर्ध्वलोक ५ कर्मेन्द्रिय, ५ वायु) ७ ऊर्ध्वलोक,
विज्ञानमय, मनोमय ७ अधोलोक, अथवा सूत्रात्मा. हिरण्यगर्भ, प्राण ७ अधोलोक, ब्रह्माड प्राणमय कोश अथवा ब्रह्मांड अथवा विज्ञानमय मनोमय ४ शरार, भाजन तथा पय स्वप्न अथवा
शरीर अथवा प्राणमय कोश वैश्वानर, विराट अथवा
स्थूलशरीर लयस्थान भोजन तथा पेय अथवा स्वप्न
अन्नमय कोश
अन्नमय कोश विश्व अन्नमय अथवा स्थूलशरीर लयस्थान जाग्रत
जाग्रत
कोश जाग्रत
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