Book Title: Shaddarshan Samucchaya Part 01
Author(s): Sanyamkirtivijay
Publisher: Sanmarg Prakashak

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Page 620
________________ ५०७ षड्दर्शन समुच्चय भाग-१, परिशिष्ट-४, जैन दर्शन का ग्रंथकलाप परिशिष्ट-४ जैनदर्शन का ग्रंथकलाप श्री जिनागमो की सारांश माहिती : ११ अंगसूत्रो की माहिती : (१) श्री आचारांग सूत्र : इस आगम में जीवनशुद्धि का तत्त्व बहोत सुंदर पद्धति से समजाया है । “आचार: प्रथमो धर्मः" के जीवन सूत्र अपनाने की सकल युक्तियाँ इस आगम में बताई है । छ: जीवनिकाय की जयणा और आचार शुद्धि का विशद विवेचन इस आगम में हैं । परिचय : इस आगम में दो श्रुतस्कंध हैं । प्रथम श्रुतस्कंध में नौ अध्ययन हैं । दूसरे श्रुतस्कंध में सोलह अध्ययन है। इस आगम के उपर इस प्रकार से साहित्य मिलता है - (१) श्री भद्रबाहुस्वामी रचित ४५० श्लोक प्रमाण नियुक्ति, (२) श्री पूर्वाचार्य विरचित ८३०० श्लोक प्रमाण चूर्णि, (३) श्री शीलंकाचार्य कृत १२००० श्लोक प्रमाण टीका, (४) श्री जिनदेवगणिजी रचित ८००० श्लोक प्रमाण दीपिका टीका, (५) श्री जिनहेमाचार्यजी विरचित ९२२५ श्लोक प्रमाण दीपिका टीका । इस ग्रंथ के मूलसूत्र २५५४ श्लोक प्रमाण हैं। (२) श्री सूत्रकृतांग सूत्र : इस आगम में जगत के भिन्न भिन्न दार्शनिको के विचारो का संकलन करके उसकी अपूर्णता बताने के साथ तात्त्विक दृष्टि से पदार्थ के निरुपण की विशद चर्चा नीचे के विचारो की समीक्षा की दृष्टि से की हैं । (१) पंचमहाभूत वाद, (२) पंचस्कंधवाद (बौद्धदर्शन), (३) एकांतवाद, (४) नियतिवाद, (५) तज्जीव तच्छरीरवाद, (६) जगदुत्पत्तिवाद, (७) अकारणवाद, (८) लोकवाद, (९) आत्मवाद, (१०) क्रियावाद आदि । परिचय : इस आगम में दो श्रुतस्कंध हैं । प्रथम श्रुतस्कंध में २६ और दूसरे श्रुतस्कंध में ७ अध्ययन है । इस आगम में ८२ गद्यात्मक सूत्र और ७३२ पद्य है । इस आगम का प्रमाण २१०० श्लोक का हाल में मिलता है । इस आगम का नीचे अनुसार साहित्य उपलब्ध है । (१) श्री भद्रबाहुस्वामीजी कृत २६५ श्लोक प्रमाण नियुक्ति, (२) श्री पूर्वाचार्य विरचित ९९०० श्लोक प्रमाण चूर्णि, (३) श्री शीलंकाचार्य कृत १२८५० श्लोक प्रमाण टीका, (४) श्री हर्षकुलगणि कृत ६६०० श्लोक प्रमाण दीपिका टीका, (५) श्री साधुरंगजी कृत १०००० श्लोक प्रमाण सम्यक्त्व दीपिका । (३) श्री स्थानांग सूत्र : इस आगम में विवेक बुद्धि का बंधारण व्यवस्थित रखने के लिए जगत के भिन्न भिन्न वर्गीकरण १ से १० तक की संख्या में किया गया हैं । जिससे जिज्ञासु को एक आत्म-तत्त्व को पहचानने के लिए उपयोगीअनुपयोगी पदार्थो का स्पष्ट भान हो जाये । कुतुहल वृत्ति के शमन होने के बाद तत्त्वज्ञान की भूमिका स्थिर होती है । यह बात आगम के चिंतन-मनन से प्रतीत हो सकती हैं। परिचय : इस आगम के १० विभाग हैं । प्रत्येक विभाग को स्थान कहा जाता है । किसी में उद्देशक भी है, इस आगम में कुल मिलाके ७४३ सूत्र है, जिसकी श्लोक संख्या ३७०० की है । इस आगम के उपर नियुक्ति, चूर्णि या भाष्य हाल में उपलब्ध नहीं है। केवल नीचे की टीकायें उपलब्ध है । (१) श्री अभयदेवसूरिजी कृत १४२५० श्लोक प्रमाण बृहद्वृत्ति (२) श्री सुमतिकल्लोल कृत १३६०४ श्लोक प्रमाण बृहवृत्ति, (३) श्री नागर्षि कृत १०५०० श्लोक प्रमाण दीपिका । (४) श्री समवायांग सूत्र : इस आगम में जगत के विविध छोटे-बडे पदार्थो का १ से १०० तक की संख्या का विशिष्ट परिचय आत्मलक्षी दृष्टि से दिया है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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