________________
षड्दर्शन समुच्चय भाग - १, श्लोक - ३१, नैयायिक दर्शन
यदि हेतु पक्ष में प्राप्त न हो, तो हेतु साध्य को सिद्ध क्यों करे ? क्यों साध्य के अभाव को सिद्ध न करे ? (इस प्रकार से अतिप्रसंग आता है ।) क्योंकि हेतु साध्य को प्राप्त नहीं है । इसलिए यदि अप्राप्त हेतु साध्य को सिद्ध करता हो, तो साध्य के अभाव को भी सिद्ध करेगा ही, इस अनुसार (अ) अप्राप्तिसमा जाति बनती है। (यहाँ कारक और ज्ञापक दोनो प्रकार के हेतु लेना ।)
२१०
(११) प्रसंगसमा जाति: प्रसंग बताने के द्वारा जो खंडन करना उसे प्रसंगसमा जाति कहा जाता । जैसे कि, यदि अनित्यत्व सिद्ध करने में कृतकत्व साधन है, तो कृतकत्व को सिद्ध करने में कौन सा साधन है ? उपरांत उस साधन को सिद्ध करने में कौन सा साधन है ?
इस तरह से प्रसंग बताने के द्वारा अनवस्था खडी करना, उसे (ब) प्रसंगसमा जाति कहा जाता है ।
(१२) प्रतिदृष्टांतसमा जाति: प्रतिदृष्टांत द्वारा खंडन करना, उसे (क) प्रतिदृष्टांतसमा जाति कहा जाता है। वादि के द्वारा “अनित्यः शब्द प्रयत्नानन्तरीयकत्वात् घटवत् ।" अर्थात् शब्द अनित्य है । क्योंकि प्रयत्न से उत्पन्न होता है । (इसलिए उत्पत्ति में प्रयत्न अवश्य जुडा हुआ है।) जैसे कि घट । यह कहने पर भी जातिवादि कहता है कि, जैसे घट प्रयत्न से उत्पन्न होता होने से अनित्य देखा जाता है, उस अनुसार (घट का) प्रतिदृष्टांत नित्य आकाश भी प्रयत्न से उत्पन्न होता दिखाई देता है । (किस प्रकार ? ) जैसे कि, कुआं खोदने के प्रयत्न के उत्तर में (बाद में) अवकाश (आकाश) दिखाई देता है । इसलिए प्रयत्न से उत्पन्न होने पर भी जैसे आकाश नित्य है । वैसे शब्द भी नित्य है। इस तरह से प्रतिदृष्टांत द्वारा जातिवादि ने साध्याभाव सिद्ध किया।
इस अनुसार से अनैकान्तिकत्व का उद्भावन दूसरे भांगो के द्वारा करके खंडन करना योग्य नहीं है। (दृष्टान्त सिद्ध ही होने से उसको सिद्ध करने के लिए हेतु की जरुरत नहीं होती। इसलिए दूसरा दृष्टांत लेने की जरुरत नहीं होती। जैसे अंधियारे में पडी हुई वस्तु को देखने के लिए दीपक की जरुरत पडती है। परन्तु दीपक को देखने के लिए दूसरे दीपककी जरुरत नहीं पडती है। वैसे साध्य को सिद्ध करने के लिए दीये हूए दृष्टांत को सिद्ध करने के लिए दूसरे दृष्टांत की जरुरत नहीं है। इस प्रकार से उपर की प्रसंगसमा जाति की निवृत्ति हो जाती है । न्यायसूत्रकार कहते है कि एक दृष्टांत से साध्य की सिद्धि होती हो, तो दूसरा दृष्टांत क्यों लेंना ? उसमें कोई हेतु नहीं होता है । प्रतिदृष्टांत साधक होने पर भी मूल दृष्टांत को जब तक हेतु से खंडित नहीं किया जाय, तब तक वह भी साधक ही है। इसलिए बिना कारण मूल दृष्टांत को छोडकर दूसरा दृष्टांत लेने की जरुरत नहीं है। इस कारण से प्रतिदृष्टांतसमा जाति असत्य सिद्ध होती है ।)
(१३) (ड) अनुत्पत्तिसमा जाति : अनुत्पत्ति के द्वारा खंडन करना, उसे अनुत्पत्तिसमा जाति कहा जाता है। अर्थात् उत्पत्ति से पहले हेतुरुप कारण रहता न होने से अनुत्पत्तिसमा जाति बनती है। जैसे कि, शब्द नाम का धर्मी उत्पन्न होने से पहले कृतकत्व नाम का धर्म कहाँ रहेगा ? इसलिए कृतकत्व हेतु नहीं है, परन्तु (अ) प्राप्त्यप्राप्तिविकल्पाभ्यां प्रत्यवस्थानं प्राप्त्यप्राप्ति समे जाती भवतः ।। न्याय पृ. १८ ।। (व) प्रसङ्गापादनेन प्रत्यवस्थानं प्रसङ्गसमा जातिर्भवति ।। न्यायक० - पृ. १८ ।। (क) प्रतिदृष्टान्तेन प्रत्यवस्थानं प्रतिदृष्टान्तसमा जातिः ।। न्यायक० - पृ. १८ ।। (ड) अनुत्पत्त्या प्रत्यवस्थानमनुत्पत्तिसमाजातिर्भवति ।। न्यायक० पृ. १९९ ।।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org