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षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, श्लोक - १०, बोद्धदर्शन
"स्वसंवेदन प्रत्यक्ष का लक्षण करते हुए कहा है कि - "स्वसंवित् निर्विकल्पकम्" अर्थात् निर्विकल्पकज्ञान स्वसंवेदनस्वरुप है । इन्द्रिय द्वारा ग्रहण किये गये रुप का ज्ञान मानसज्ञान के रुप में परिवर्तित हो जाता है। तब वह विषय के प्रति इच्छा, क्रोध, मोह, सुख, दुःख आदि का जो अनुभव होता है, वह स्वसंवेदन प्रत्यक्ष है।) ___ भूतार्थ - वास्तविक क्षणिकनिरात्मक आदि अर्थो की प्रकर्षपर्यन्त (प्रकृष्ट) भावना से उत्पन्न ज्ञान योगिज्ञान कहा जाता है। यहाँ भूतार्थ यानी प्रमाण से उपपन्न क्षणिक निरात्मक अर्थ और चित्त में बारबार समारोप करना वह भावना । अर्थात् चित्त में पदार्थो का बारबार विचार करने से जब वह प्रकृष्ट बनता है, तब योगिज्ञान की उत्पत्ति होती है। (प्रमाणवार्तिक में योगिज्ञान के लिये कहा है कि - "प्रागुक्तं योगिनां ज्ञानं तेषां तद्भावनामयम्, विधूतकल्पनाजालं स्पष्टमेवावभासते । कामशोकभयोन्मादचोरस्वप्नाद्युपप्लुताः अभूतानपि पश्यन्ति पुरतोऽवस्थितानिव ॥ ३।२८२ ॥ भावार्थ स्पष्ट है।)
ननु यदि क्षणक्षयिणः परमाणव एव तात्त्विकास्तर्हि किंनिमित्तोऽयं घटपटकटशकटल कुटादिस्थूलार्थप्रतिभास इति चेत् । B-14निरालम्बन एवायमनादिवितथवासनाप्रवर्तितस्थूलार्थावभासो निर्विषयत्वादाकाशकेशवत्स्वप्नज्ञानवद्वेति । यदुक्तम् - “बाह्यो न विद्यते ह्यर्थो यथा बालैर्विकल्प्यते । वासनालुठितं चित्तमर्थाभासे प्रवर्तते ।। १ ।। नान्योऽनुभाव्यो बुद्ध्यास्ति तस्या नानुभवोऽपरः । ग्राह्यग्राहकवैधुर्यात्स्वयं सैव B-1प्रकाशते ।।२।।" [प्र. वा. २/३२७] इति च ।।
ननु प्रत्यक्षेण क्षणक्षयिपरमाणुस्वरूपं स्वलक्षणं कथं संवेद्यत इति चेत् । उच्यते । प्रत्यक्षं हि वर्तमानमेव सन्निहितं वस्तुनो रूपं प्रत्येति, न पुनर्भाविभूतं, तदसन्निहितत्वात्तस्य । तर्हि प्रत्यक्षानन्तरं नीलरूपतानिर्णयवत्क्षणक्षयनिर्णयः कुतो नोत्पद्यत इति चेत् । उच्यते । तदैवं स्मृतिः पूर्वदेशकालदशासंबन्धितां वस्तुनोऽध्यवस्यन्ती क्षणक्षयनिर्णयमुत्पद्यमानं निवारयति । अत एव सौगतैरिदमभिधीयते । दर्शनेन क्षणिकाक्षणिकत्वसाधारणस्यार्थस्य विषयीकरणात्, कुतश्चिभ्रमनिमित्तादक्षणिकत्वारोपेऽपि न दर्शनमक्षणिकत्चे प्रमाणं, किं तु प्रत्युताप्रमाणं, विपरीताध्यवसायाक्रान्तत्वात्, क्षणिकत्वेऽपि न तत्प्रमाणं, अनुरूपाध्यवसायाजननात् । नीलरूपे तु तथाविधनिश्चयकरणात्प्रमाणमिति । ततो युक्तमुक्तं निर्विकल्पकमभ्रान्तं च प्रत्यक्षमिति । टीकाका भावानुवाद :
शंका : यदि क्षणिक (क्षणस्थायी) परमाणु ही तात्त्विक होते है, तो घट, पट, बिछौना, कुटादि स्थूलपदार्थो के प्रतिभास में निमित्त कौन है ?
समाधान : निरालंबन ऐसी अनादिकालीन मिथ्यावासना के बल से घटादि स्थूल पदार्थ है, ऐसा
(B-14-15)- तु० पा० प्र० प० ।
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