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षड्दर्शन समुच्चय भाग - १, श्लोक - १०, बोद्धदर्शन
प्रतिभास प्रवर्तित है । अर्थात् जैसे आकाश में केश और स्वप्न का ज्ञान निर्विषयक होने से मिथ्या है। वैसे निरालंबन अनादिकालीन वासना से प्रतिभासित घटादि पदार्थ भी निर्विषयक होने से मिथ्या है। तात्त्विक नहीं है। तात्त्विक तो केवल परमाणु ही है। इसलिये प्रमाणवार्तिक में कहा है कि
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“जैसे बच्चो के द्वारा बाह्य पदार्थो का विकल्प किया जाता है, फिर भी वह बाह्य पदार्थ विद्यमान हो, ऐसा नहीं बनता है। (वैसे) वासनायुक्त चित्त में (जो बाह्य अर्थ वास्तविक नहीं है, उसका भी) अवभास प्रवर्तित होता है। (अर्थात् मिथ्यावासना से कलुषित अज्ञान लोग जिस-जिस स्थिर-स्थूल आदि स्वरुप से पदार्थो की कल्पना करते है, वस्तुतः वे अर्थ उस स्वरुप से किसी भी प्रकार से बाह्य रुप से अपनी सत्ता नहीं रखते है। परंतु मिथ्यावासना से कलुषित चित्त उस उस अर्थो के आकार में प्रतिभासित होता है। ) ॥१॥" तथा
"बुद्धि से अनुभाव्य - अनुभव करने योग्य दूसरा पदार्थ नहीं है या बुद्धि को ग्रहण करनेवाला दूसरा कोई ग्राहक अनुभव नहीं है । (इससे ) यह बुद्धि ग्राह्य-ग्राहकभाव से रहित बनकर स्वयं ही प्रकाशमान होती है ||२||"
शंका : प्रत्यक्ष से क्षणिक परमाणुरुप स्वलक्षण का अनुभव किस तरह से होता है ?
समाधान : प्रत्यक्ष प्रमाण सन्निहित (नजदिक) ऐसी वर्तमान क्षणरुप वस्तु के स्वरुप को प्रकट करता है । परन्तु वस्तु की भूत और भावि क्षण सन्निहित नहि होने से उसके स्वरुप को प्रकट नहीं करता है। इस प्रकार प्रत्यक्ष प्रमाण के द्वारा वर्तमानक्षण रुप वस्तु के स्वरुप का संवेदन किया जाता है 1
शंका : यदि प्रत्यक्ष से क्षणिक परमाणुरूप स्वलक्षण का अनुभव होता है। अर्थात् प्रत्यक्ष से क्षणिकता का ज्ञान होता है तो जैसे नील प्रत्यक्ष से नीलरुपता का निर्णय करानेवाला 'यह नील है' ऐसा विकल्पज्ञान उत्पन्न होता है, वैसे 'यह क्षणिक है' ऐसा ज्ञान क्यों उत्पन्न नहीं होता ? (अर्थात् प्रत्यक्ष के बाद भी “यह वस्तु स्थिर है" ऐसा लगता है, परंतु "यह क्षणिक है" ऐसा क्यों नहीं लगता है ? )
समाधान: (ऐसी क्षणिकता का निर्णय प्रत्यक्ष से नहीं होता, क्योंकि वस्तु का प्रत्यक्ष होता है, तब) वस्तु की पूर्व देश, काल, दशा की संबंधिता का अध्यवसाय करती हुई स्मृति होती है। वह स्मृति वस्तु की क्षणिकता का निर्णय नहीं होने देती। कहने का आशय (मतलब) यह है कि, निर्विकल्पक दर्शन द्वारा जिस समय पदार्थ की क्षणिकता का अनुभव होता है, वही समय उस पदार्थ की पूर्वदेशसंबंधिता, पूर्वकालसंबंधिता तथा पूर्वदशा का स्मरण होता है, उसके कारण ऐसा लगा करता है कि यह वही पदार्थ है कि जो उस देश में था, यह वही पदार्थ है जो पूर्वकाल में भी देखा था, यह वही पदार्थ है कि जो पूर्व अवस्था (दशा) में था। इत्यादि स्थिति का स्मरण, 'यह क्षणिक है' ऐसे विकल्पज्ञान को नहीं होने देता ।
इसलिये ही बौद्धो के द्वारा कहा जाता है कि - निर्विकल्पक दर्शन द्वारा तो क्षणिक और अक्षणिक उभय साधारण वस्तुमात्र का ग्रहण होता है। (अर्थात् निर्विकल्पक दर्शन के विषय क्षणिक-अक्षणिक उभय साधारण वस्तु बनते है।) इसलिये बाद में कोई विभ्रम के निमित्त से वस्तु में अक्षणिकत्व का आरोप हो
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