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सत्य हरिश्चन्द्र
रूप - लुब्ध नर मोह - पाश में
बँधा, प्रेम क्या कर सकता ? श्वेत - मृत्तका - मोहित कैसे,
जीवन - तत्त्व परख सकता?
मैं कौशल की रानी हूँ, बस
__ नहीं भोग पर भूलगी । कर्म - योग की कण्टक - दोला,
पर ही सतत झूलगी। यह शोभा - श्रृङ्गार सकल तज,
तपस्विनी बन जाना है। लक्ष्य - भ्रष्ट राजा को फिर से,
नीति - मार्ग समझाना है।
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