Book Title: Satya Harischandra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 192
________________ सत्य हरिश्चन्द्र १८१ अन्तिम दम तक भी यदि मानव, त्याग न सके विकारों को। वह मानव क्या, मानव - पशु है, अपनाए कुविचारों को । श्वेत - केश, वृद्धत्व , भाव के, आने से जो पहले ही। त्याग भोग, वैराग्य धार ले, धन्य मनुज वे विरले ही। श्री रोहित के प्रतिनिधि बनकर, किया प्रजा पर शुभ शासन । हरिश्चन्द्र का यश, जग - फैला, श्रेष्ठ धर्म का अनुशासन । दुराचार, अन्याय आदि का, नाम - शेष ही कर डाला। सदाचार, सद् - धर्म, न्याय को, करी समर्पण जय - माला । रोहित शिक्षित - दीक्षित होकर, राज्य - वहन के योग्य हुए। हरिश्चन्द्र भी राज्य सौंपकर । मुनि - जीवन के योग्य हुए। हरिश्चन्द्र - तारा ने दीक्षा __ धारण की, जप - तप कीना । अपना कर कैवल्य ज्ञान फिर, पूर्ण शुद्ध शिव = पद लीना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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