Book Title: Satya Harischandra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 195
________________ १८४ सत्य हरिश्चन्द्र यह क्लेश द्वष का झगड़ा, __ क्या मार्ग कलंकित पकड़ा, कर दूर पाप का पचड़ा, तू गीत प्रेम के गा ले रे ! कर दीन · दुःखी की सेवा, सेवा से मिलती मेवा, ___ हो पार भँवर से खेवा, तू जग में नाम कमा ले रे ! जीवन में बदबू छाई, फैली सब ओर बुराई, करले कुछ नेक कमाई, तू अपना मन महका ले रे ! निज - धर्म की रक्षा करना, जग - संकट से क्या डरना, तप - तप कर खूब निखरना, तू 'अमर' सत्य - गुण गा ले रे ! VE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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