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सत्य हरिश्चन्द्र
यह क्लेश द्वष का झगड़ा, __ क्या मार्ग कलंकित पकड़ा,
कर दूर पाप का पचड़ा,
तू गीत प्रेम के गा ले रे ! कर दीन · दुःखी की सेवा,
सेवा से मिलती मेवा, ___ हो पार भँवर से खेवा,
तू जग में नाम कमा ले रे ! जीवन में बदबू छाई, फैली सब ओर बुराई, करले कुछ नेक कमाई,
तू अपना मन महका ले रे ! निज - धर्म की रक्षा करना, जग - संकट से क्या डरना, तप - तप कर खूब निखरना,
तू 'अमर' सत्य - गुण गा ले रे !
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