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प्रशस्ति स्थानकवासी जैन - संघ में,
'पूज्य मनोहर' बड़ भागी। धीर, वीर, गंभीर, संयमी,
हुए प्रतिष्ठित जग - त्यागी। कष्ट सहन कर किये अनेकों;
ग्राम, नगर - जन प्रतिबोधित । "गच्छ मनोहर" चला आपसे,
संयम - पथ में अतिशोभित ।
शास्त्राभ्यासी, उग्र तपस्वी,
पूज्यश्री मुनि मोतीराम । 'गच्छाचार्य' दिवंगत जिनका,
गौरव है अब भी अभिराम ।
अन्तेवासी श्रेष्ठ आपके,
'पृथ्वीचन्द्रजी' मुनिवर हैं। जैनाचार्य पदालंकृत हैं,
गच्छ मनोहर - दिनकर हैं। चरण - रेणु है शिष्य 'अमर' मुनि,
हरिश्चन्द्र यश गाया है। सत्य - धर्म की महिमा का यह,
उज्ज्वल चित्र बनाया है।
श्रद्धास्पद गणिवर्य 'श्याम' मुनि,
__ भद्र स्वभावी गुण - धारी। 'प्रेमचन्द्रजी' शिष्य आपके,
प्रेम - मूर्ति विमलाचारी ।
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