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सत्य हरिश्चन्द्र
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बाधाओं पर विजय प्राप्त कर,
जो निज सत्य निभाता है। नर से नारायण की पदवी,
वही जगत में पाता है। सार यही है धर्म • कथा का,
तदनुसार जीवन करलें। पूर्ण नहीं, तो कुछ तो मन में,
धार्मिकता का रस भरलें।
भूमण्डल पर हरिश्चन्द्र के
सुयश नित्य गाए जाएँ। सदाकाल सर्वत्र सत्य की,
विजय • पताका फहराएँ।
गीत
तू मानवता अपना ले रे, यह जीवन मधुर बना ले रे ! - ध्र व
यह धन कंचन मृदु काया, सब सपने की है माया, क्या इन पर जी ललचाया, तू त्याग की तान लगा ले रे ।
मन झूठा, वाणी झूठी, सव स्वार्थ - कहानी झूठी, वस छोड़ मोह की मूठी, त सत्य का साज सजा लेरे।
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