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सत्य हरिश्चन्द्र
धन्य - धन्य नृप हरिश्चन्द्र हैं,
धन्य - धन्य तारा रानी। सत्य - धर्म की रक्षा के हित,
झेली क्या • क्या हैरानी । अजर-अमर यश जग में अब तक,
- शास्त्रकार नित गाते हैं। जीवन-वृत्त श्रवण कर पुलकित,
श्रोता नहीं अघाते हैं। सर्वोत्तम था यह जीवन भी,
सर्वोत्तम वह जीवन है। जन्म - मृत्यु का स्पर्श नहीं अब,
___ चरणों में नित वन्दन है। पाठक वृन्द ! विश्व में केवल,
शुद्ध सत्य की पूजा है। मानव की महिमा का सचमुच,
__ कारण और न दूजा है। अगर हृदय से पाप - कर्म का,
कुत्सित कलि - मल धोना है । श्रेष्ठ सत्य अपनाएँ, बेड़ा
पार इसी से होना है।
हरिश्चन्द्र का श्रेष्ठ सत्य - पथ, . स्पष्ट आपके सम्मुख है। धीरे - धीरे बन चलें निरन्तर,
बाधाओं का क्या दुःख है ?
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