Book Title: Satya Harischandra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 191
________________ उपसंहार भोग - वासना त्याग कर जो बनता निष्काम, अजर, अमर आनन्दमय पाता वह शिव-धाम । अखिल विश्व में सबसे ऊँचा, जीवन, मानव - जीवन है । मानवता ही सबसे बढ़ कर, स्वर्ग - लोक के देव मनुज - भव, पाने की इच्छा मानवता Jain Education International अजर - अमर अक्षय धन है । - - द्वारा ही ऋषि-मुनि, मानव तन पाकर भी जो नर, जीवन उच्च बना न सका । समझो चिन्तामणि पाकर वह, निज रंकत्व मिटा न सका । करते । दुस्तर भव सागर तरते | पूर्व काल में नर जीवन के, ब्रह्मचर्य चार विभाग बनाते थे । पालक, गृहमेधी, साधक, विरत, कहाते थे । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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