Book Title: Satya Harischandra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 194
________________ सत्य हरिश्चन्द्र १८३ बाधाओं पर विजय प्राप्त कर, जो निज सत्य निभाता है। नर से नारायण की पदवी, वही जगत में पाता है। सार यही है धर्म • कथा का, तदनुसार जीवन करलें। पूर्ण नहीं, तो कुछ तो मन में, धार्मिकता का रस भरलें। भूमण्डल पर हरिश्चन्द्र के सुयश नित्य गाए जाएँ। सदाकाल सर्वत्र सत्य की, विजय • पताका फहराएँ। गीत तू मानवता अपना ले रे, यह जीवन मधुर बना ले रे ! - ध्र व यह धन कंचन मृदु काया, सब सपने की है माया, क्या इन पर जी ललचाया, तू त्याग की तान लगा ले रे । मन झूठा, वाणी झूठी, सव स्वार्थ - कहानी झूठी, वस छोड़ मोह की मूठी, त सत्य का साज सजा लेरे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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