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सत्य हरिश्चन्द्र
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अन्तिम दम तक भी यदि मानव,
त्याग न सके विकारों को। वह मानव क्या, मानव - पशु है,
अपनाए कुविचारों को ।
श्वेत - केश, वृद्धत्व , भाव के,
आने से जो पहले ही। त्याग भोग, वैराग्य धार ले,
धन्य मनुज वे विरले ही। श्री रोहित के प्रतिनिधि बनकर,
किया प्रजा पर शुभ शासन । हरिश्चन्द्र का यश, जग - फैला,
श्रेष्ठ धर्म का अनुशासन । दुराचार, अन्याय आदि का,
नाम - शेष ही कर डाला। सदाचार, सद् - धर्म, न्याय को,
करी समर्पण जय - माला । रोहित शिक्षित - दीक्षित होकर,
राज्य - वहन के योग्य हुए। हरिश्चन्द्र भी राज्य सौंपकर ।
मुनि - जीवन के योग्य हुए। हरिश्चन्द्र - तारा ने दीक्षा
__ धारण की, जप - तप कीना । अपना कर कैवल्य ज्ञान फिर,
पूर्ण शुद्ध शिव = पद लीना ।
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