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सत्य हरिश्चन्द्र
गीत
दासी मैं चरण कमल की भूल न जाना, स्वामी !
प्रेम की अपनी दुनिया अमर बनाना, स्वामी !
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जीवन हो पूर्ण चरन में, थी यह अभिलाषा मन में,
कर्मों का फेर भयंकर, अब क्या पछताना, स्वामी ! दासी की फिक्र न करना, स्वास्थ्य की रक्षा करना,
संकट का समय निकट है, धैर्य बंधाना, स्वामी !
मुझ से जो दोष बना हो, वह सब आज क्षमा हो,
पिछली भूलों का दिल में, ध्यान न लाना, स्वामी !
जीवन का अन्तिम क्षण हो, श्री चरणों में बस मन हो,
अश्तर में केवल इच्छा, पार लगाना, स्वामी ! प्राणेश्वर सहर्ष विदा दो, कुछ अंतिम मधु शिक्षा दो,
श्रीमुख से कहा वचन ही रत्न खजाना, स्वामी !
गीत
विदुषी हो तुमको अब क्या नीति सिखाना, देवी ! सत्य की मूरत तुम हो, संत्य निभाना, देवी !
संकट की नदिया गहरी, जीवन की नैय्या भंझरी,
साहस की बल्ली लेकर, पार लगाना, देवी !
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