Book Title: Satya Harischandra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 171
________________ १६० सत्य हरिश्चन्द्र आज खिला जो फूल चमन में, __कल उसको मुरझाना है ! आज खिली जो धूप तो कल को, घन - अंधियारा छाना है । प्रात चढ़ा जो सूर्यः गगन में, शाम हुए छिप जाना है ! अभी उठों जो लहरें जल में, अभी उन्हें लय पाना है ! रात पड़ी जो ओस कमल पर, हिलते ही ढल जाना है ! यह जीवन कागज की पुड़िया, बूंद लगे गल जाना है ! चन्द रोज की जिन्दगानी पर, क्यों पागल मस्ताना है ! कितना ही तू क्यों न अकड़ ले, आखिर मरघट आना है ! कौन किसी का जग में, जिस पर, __ यह सब झगड़ा ठाना है। 'अमर' सत्य पर तू बलि हो जा, नाम अमर अपनाना है ! मस्तक में कुछ देर सिनेमा चला विरक्त विचारों का, आते - आते ध्यान हुआ निज जीवन के व्यवहारों का ! "तारा ! तेरे जैसी जग में विरल नारियाँ होती हैं, पति के कारण कष्ट उठा सुख - वैभव से कर धोती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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