________________
विपत्ति - वज्र
आशा - जाल,
मानव वर्षों सोचता, बुनता पल भर में सब ध्वस्त हो, कुटिल कर्म की चाल ।
आशा पर मानव जीवन का पल पल समय गुजरता है, जीवन का बेड़ा आशा की लहरों पर ही चलता है । सुख के उजले, सुन्दर वासर, संकट की काली रातें, कट जाते हैं दिन दिन वर्षों, आशा की करते बातें !
-
कीड़े से ले इन्द्र स्वर्ग का सभी चराचर जग- प्राणी, आशा की छलना में चक्कर काट रहे यह ऋषि - वाणी ! आशा के विन जीवन को, गति इंच न एक सरकती है, जीवन की प्रत्येक क्रिया पर, आशा नित्य भलकती है ।
तारा भी निज सुत रोहित की, कर्म - वीरता से हर्षित, देख पुत्र की चंचलता को, नहीं कौन माना गर्वित ! " आशा है रोहित निज बल से, कुछ धन राशि कमाएगा, होकर तरुण नृपति का, मेरा चिर दासत्व छुड़ाएगा । कौन बड़ी सम्पत्ति देय है, मुहर सहस्र ही तो केवल, धन्य दिवस वह होगा, पति के दर्शन होंगे जब निर्मल ।" भाग्य कुटिल हँसता था - "रानी, सोच रही हो क्या चुपचाप, मेरा भी कुछ पता तुझे है ? आता है भीषण सन्ताप |
एक बार तो ऐसा झटका,
दूँगा संभल न पाओगी, अन्तिम सीमा पर पटकूंगा, रोओगी - चिल्लाओगी । "
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org