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सत्य हरिश्चन्द्र
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क्या - क्या आशा भला मैंने बांधी,
क्या - क्या खिचड़ी मनोरथ की रांधी, आज तूने यह क्या धूल डारी ?
हाय बेटा ! क्या तूने विचारी ? कैसे धीरज धरू' मैं बता तू,
हाय ! सूरत जरा तो दिखा तू, चलती गम की जिगर पै कटारी,
हाय ! बेटा, क्या तूने विचारी ? पास मेरे रहा क्या, न कुछ भी,
मैं अनाथा, सहारा न कुछ भी, आज उजड़ी मेरी दुनिया सारी,
हाय ! बेटा, क्या तूने विचारी ? कैसे जीवन हा! मेरा कटेगा,
हाय ! निशि - दिन कलेजा फटेगा, छाया चहुँ ओर अंथकार भारी,
हाय ! बेटा, क्या तूने विचारी हृदय-हीन है मानव कितना ? आप नमूना देखेंगे, क्या देखेंगे ? क्षुब्ध बनेंगे, हृदय घणा से भर लेंगे ! ब्राह्मण - पुत्र नाम का ब्राह्मण, कर्मों से चाण्डाल बना, पास खड़ा था रुद्र रूप - धर, कलिमल से था हृदय सना !
"रोती क्यों है पगली ? हो क्या गया ? कौन-सा नभ टूटा ? बालक ही तो था, दासी के जीवन का बन्धन छूटा ! मैं तुझको रो-रो कर, ऐसे कभी नहीं मरने दूंगा, मुहर पांच सौ खर्च करी है, सेवा जीवन भर लगा !"
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