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________________ सत्य हरिश्चन्द्र १५३ क्या - क्या आशा भला मैंने बांधी, क्या - क्या खिचड़ी मनोरथ की रांधी, आज तूने यह क्या धूल डारी ? हाय बेटा ! क्या तूने विचारी ? कैसे धीरज धरू' मैं बता तू, हाय ! सूरत जरा तो दिखा तू, चलती गम की जिगर पै कटारी, हाय ! बेटा, क्या तूने विचारी ? पास मेरे रहा क्या, न कुछ भी, मैं अनाथा, सहारा न कुछ भी, आज उजड़ी मेरी दुनिया सारी, हाय ! बेटा, क्या तूने विचारी ? कैसे जीवन हा! मेरा कटेगा, हाय ! निशि - दिन कलेजा फटेगा, छाया चहुँ ओर अंथकार भारी, हाय ! बेटा, क्या तूने विचारी हृदय-हीन है मानव कितना ? आप नमूना देखेंगे, क्या देखेंगे ? क्षुब्ध बनेंगे, हृदय घणा से भर लेंगे ! ब्राह्मण - पुत्र नाम का ब्राह्मण, कर्मों से चाण्डाल बना, पास खड़ा था रुद्र रूप - धर, कलिमल से था हृदय सना ! "रोती क्यों है पगली ? हो क्या गया ? कौन-सा नभ टूटा ? बालक ही तो था, दासी के जीवन का बन्धन छूटा ! मैं तुझको रो-रो कर, ऐसे कभी नहीं मरने दूंगा, मुहर पांच सौ खर्च करी है, सेवा जीवन भर लगा !" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001309
Book TitleSatya Harischandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size8 MB
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