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सत्य हरिश्चन्द्र देख प्रकृति की शोभा अनुपम,
हर्ष-मत्त होकर झूमा। भारत की वन-भूमि प्रजा की,
___अपनी ही निधि होती थी । दीन-हीनतर जनता की तो,
प्रतिपालक ही होती थी। गोचर - भूमि बड़ी सुन्दर थी,
पशु - पालन नित होता था। साधक-जन तप-निरत कालिमा
निज' अन्तर की खोता था। वन - फल वेच दरिद्री-जन भी,
अपनी गुजर चलाते थे । वन होने से वर्षा होती,
कृषक सदा सुख पाते थे । आज दशा है विकट, कहाँ वह
वन के दृश्य ? विलुप्त हुए, प्रजा कष्ट से तड़प रही है,
भूप लोभ - अभिभूत हुए । मातृ - भक्त रोहित माता के,
लिए मधुर कुछ फल लाया। अस्वीकृति में भी आग्रह - वश,
खिला हर्ष मन में पाया । माता बोली--"बेटे, वन में,
तुमको भीति नहीं लगती।
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