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स्वतंत्र रोहित
मात - पिता अनुसार ही होती है सन्तान, कटुक - मधुर फल, वृक्ष के लगते बीज-समान । सन्तति के गुण - दोष अधिकतर,
मात - पिता पर निर्भर हैं । संस्कारों के जीवन - पट पर,
पड़ते चिन्ह, प्रबलतर हैं । शिलान्यास संस्कृति का माता
पिता पूर्व रख जाते हैं। आगे चल कर पूर्व - बीज ही,
यथा - काल फल लाते हैं । बालक कच्चा - घट है, उसको
जैसा जी चाहे, ढालें। सुन्दर - सुघड़ बना लें चाहे,
कुटिल - कुरूप बना डालें। हरिश्चन्द्र तारा हैं निर्भय,
धीर, वीर साहसशाली। रोहित कब हो सकता है, फिर
भला इन्हीं गुणो से खाली । रोहित देख रहा था--"माता,
__नित मदर्थ भूखी रहती।
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