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________________ सत्य हरिश्चन्द्र गीत दासी मैं चरण कमल की भूल न जाना, स्वामी ! प्रेम की अपनी दुनिया अमर बनाना, स्वामी ! १३० " जीवन हो पूर्ण चरन में, थी यह अभिलाषा मन में, कर्मों का फेर भयंकर, अब क्या पछताना, स्वामी ! दासी की फिक्र न करना, स्वास्थ्य की रक्षा करना, संकट का समय निकट है, धैर्य बंधाना, स्वामी ! मुझ से जो दोष बना हो, वह सब आज क्षमा हो, पिछली भूलों का दिल में, ध्यान न लाना, स्वामी ! जीवन का अन्तिम क्षण हो, श्री चरणों में बस मन हो, अश्तर में केवल इच्छा, पार लगाना, स्वामी ! प्राणेश्वर सहर्ष विदा दो, कुछ अंतिम मधु शिक्षा दो, श्रीमुख से कहा वचन ही रत्न खजाना, स्वामी ! गीत विदुषी हो तुमको अब क्या नीति सिखाना, देवी ! सत्य की मूरत तुम हो, संत्य निभाना, देवी ! संकट की नदिया गहरी, जीवन की नैय्या भंझरी, साहस की बल्ली लेकर, पार लगाना, देवी ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001309
Book TitleSatya Harischandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size8 MB
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