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कोशिक का राज्याधिकार
हरिश्चद्र भूपति गए जिस दिन नगरी छोड़, अगले दिन साकेत में हुए और ही जोड़ !
प्रातःकाल
अयोध्यावासी निद्रा से जागे ज्योंही पड़ा दिखाई विस्मयकारक दृश्य एक अभिनव त्योंही
स्थान-स्थान पर ऋषि ब्रह्मचारी गर्व - मत्त हो फिरते है गैरिक - चीवर - धारी मुण्डित, जटिल सरोष विचरते हैं
पद्मासन से बैठे कोई, सन्ध्या वन्दन करते हैं पकड़ नासिका श्वास - वेग को, वक्षःस्थल में भरते हैं
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बड़ी शान के साथ कमण्डल, जोर लगा कुछ माँज रहे अग्निहोत्र के लिये लकड़ियाँ, कुछ फक्कड़ थे काट रहे
'जय गुरुदेव' घोष के बल से, गूँजा सारा गगनांगण धीरे- धीरे धवल गृहों में, घुसे तपस्वी क्लेश हरण
नगर निवासी मूक भाव से काण्ड देखते खड़े - खड़े शाप-भीति से परिकम्पित सब, ऋषि-मुनियों से कौन अड़े
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एक नागरिक अति साहस कर बोला- “आप कौन भगवन् ! क्यों घुसते हो गृहों में ? भूल गए क्या शास्त्र - चलन !
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अगर आप वनवासी यों, हम लोगों के घर रह जाएँ ! पुत्र, नारि, परिजन को लेकर, हम असहाय कहाँ जाएँ ?'
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