________________
सत्य हरिश्चन्द्र
गीत
तुम्हारी है निर्मल यह जल - धार, गंगे !
हमारी है उज्ज्वल चरित - धार, गंगे ! हिमाचल से निकली मिली जा जलधि में,
पिता - गृह से हम भी पति - द्वार, गंगे !
नहीं जाती, अन्यन्त्र सागर को तज कर,
हमें भी स्व-पति का अचल प्यार, गंगे। यह कल - कल सभी शान्त सागर में जा कर,
श्वशुर • घर यही हम कुलाचार गंगे ! अलग है न अस्तित्व सागर में मिल कर,
पुरुष - नारि हम एक - आकार, गंगे !
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org