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राज्य-दान
हरिश्चन्द्र का देखिये, साहस प्रबल महान, कौशल से साम्राज्य का पल में करते दान ।
मानव - जग में वीर पुरुष ही नाम अमर कर जाते हैं, कायर नर तो जीवन भर बस रो - रो कर मर जाते हैं।
वीर पुरुष ही रण में तलवारों के जौहर दिखलाते, मातृ - भूमि की रक्षा के हित जोवन - भेंट चढ़ा जाते ! वीर पुरुष हो उग्र घोर तप करते हैं अविचल, निश्छल, चूर - चूर कर देते, गुरुतर चिर - संचित कर्मों के दल। वीर पुरुष ही मुक्त हस्त से करते हैं सर्वस्व का दान, दीन - दुःखी के लिये सर्वदा प्रस्तुत हैं तरु - कल्प - समान । जिस धन के हित पुत्र, पिता, पत्नी तक भी नर तज देते, वह धन, दान - वोर पलक में रज - कण तुल्य लुटा देते।
वह कायर क्या देंगे जो मरते हों कौड़ी - कौड़ी पर, खाते - देते देख अन्य को, जो कांपते हों थर ! थर ! थर !
वीर शिरोमणि हरिश्चन्द्र ने चमत्कार दिखला दीना, राज्य दान के लिये मृत्तिका - पिण्ड तुरत मँगवा लीना ।
विश्वामित्र सोचते मन में- “साहस बड़ा विलक्षण है, कौशल-सा साम्राज्य त्यागते तनिक न चिन्ता का कण है।
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