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सत्य हरिश्चन्द्र
गीत
ढ़ क्षत्रिय वीर कहाऊँगा, मैं अपना धर्म निभाऊँगा,
प्रण को कर पूर्ण दिखाऊँगा मैं अपना ....... ....... ......... !
सुख दुःख का कुछ भी ध्यान नहीं, धन - वैभव का अरमान नहीं,
बन भिक्षुक धक्के खाऊँगा, मैं अपना....." ....... !
यह राजपाट सब सपना है, इक सत्य धर्म ही अपना है,
निज ध्येयों पै बलि जाऊँगा, मैं अपना ................ ......... !
मधु भोजन शाही छोडगा, वन - फल से नाता जोडूगा,
तरु नीचे रात विताऊँगा, मैं अपना........ ................. !
आकाश के तारे पृथ्वी पर, पृथ्वी के पर्वत हों नभ पर,
पर, मैं निज पथ न भुलाऊँगा, मैं अपना........ ................ !
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