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सत्य हरिश्चन्द्र
पाक - साफ बनन को ऊपर से समझाने की माया, अगर राज्य का मोह शेष था, फिर क्यों दानी कहलाया ?"
अभिवन्दन कर कहा भूप ने-"क्षमा सिन्धु ! अब क्षमा करें, मेरा क्या है दोष सभासद, अगर आपसे नहीं डरें। मैं तो यहाँ अचल बैठा हूँ, नहीं अभी तक कहीं गया, किसको कैसे क्या बहकाया? समझ न पाया दोष नया ! आप स्वयं क्रोधित पहले हो, क्रोध इन्हें दिलवाते हैं, शासक • योग्य स्नेहयुत मृदुता, नहीं आप अपनाते हैं । धैर्य रखें, नव परिवर्तन है, ठीक सभी हो जाएगा, यथाशक्य यह सेवक, जनता को, भवदनुकूल बनाएगा।" हरिश्चन्द्र ऋषि - आज्ञा लेकर, विदा महल की ओर हुए, गए सभासद भी नगरी में, व्याकुल दुःख • विभोर हुए।
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