________________
सत्य हरिश्चन्द्र
२५ अन्तर शासक औ' शासित का भुला प्रेम का पथ लीना, कष्ट किये सब दूर प्रजा के घर-घर में मंगल कीना !
सदाचार, व्यवसाय, कला की शिक्षा का परिवाह बहा, दूर हुए अपराध हेतु, तो अपराधों का नाम कहाँ ? सूर्योदय होने पर जैसे उल्लू खुद छिप जाते हैं, अत्याचारी, व्यभिचारी जन हूँढ़े नजर न आते हैं !
कौशल में सब ओर शान्ति का वैभव का, सुवितान तना, दिदिगन्त में नृप - यश फैला पूर्ण सत्य का राज्य बना ! धुन के पक्के कर्मठ मानव, जिस पथ पर बढ़ जाते हैं, एक बार तो रौरव को भी स्वर्ग बना दिखलाते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org