________________
इन्द्र - सभा
अखिल विश्व में सत्य ही एक मात्र में श्रेय, होता सत्य प्रतिज्ञ का त्रिभुवन में यश गेय ।
स्वर्ग - लोक में इन्द्र देव की सभा लगी है अति महती, नाना वेश - विभूषा भूषित देवराज - राजित बृहती ! पारिजात की मालाएँ सब ओर मनोहर लटक रहीं, मादक सुरभि - गन्ध से सारी सभा भूमि है महक रहीं ।
•
रत्नों का आलोक समुज्ज्वल प्रभा पुञ्ज - सा फैला है, प्रतिबिम्बित देवी - देवों का लगा
भित्ति पर मेला है ।
-
एक - एक से बजते कोमल वाद्य यन्त्र सुषमा - शाली, कोकिल - कण्ठी सुर बालाएँ नाच रही हैं मतवाली ।
कहा इन्द्र ने - "गान सदा ही विषय - भोग के होते हैं, देव देवियाँ वृथा अमोलक समय पाप में खोते हैं । सर्वश्रेष्ठ है सत्य, आज बस गान इसी का होने दो,
मानव पट से मलिन वासनाओं का कलिमल धोने दो ।
-
-
Jain Education International
-
आज्ञा पा कर सुर बालाएँ लगीं सत्य के गुण गाने, गायन क्या था, स्वर - लहरी से लगीं सुधा ही बरसाने ।
गीत
पूजा रोज रचा लो मन में सत्य भगवान की, पापी से भी पापियों की जिन्दगी हो शान की !
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org