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४५२४,४५२५.
४५२६,४५२७.
४५२८.
४५२९,४५३०.
४५३१.
४५३२.
४५३३-४५४९.
४५५०-४५५३.
४५५४-४५६६.
४५६७-४५७०.
४५७१,४५७२.
४५०३,४५७४.
४५७५,४५७६.
४५७७-४५८०.
४५८१-४५८४.
४५८५-४५८८.
४५८९-४५९४.
४५९५,४५९६.
४५९७-४६०१.
४६०२-४६०६.
४६०७.
४६०८.
४६०९.
४६१०-४६१२.
४६१३-४६२४.
४६२५-४६२८.
४६२९-४६३५.
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(३६)
प्रथम संहनन, चतुर्दश पूर्वधरों की व्यवच्छित्ति के साथ व्यवहार चतुष्क का लोप मानने वालों का निराकरण और प्रायश्चित्त ।
जंबूस्वामी के निर्वाण के बाद १२ अवस्थाओं का व्यवच्छेद।
चतुर्दशपूर्वी की व्यवच्छित्ति होने पर तीन वस्तुओं का व्यवच्छेद- प्रथम संहनन, प्रथम संस्थान, अन्तर्मुहूर्त में चौदह पूर्वों का परावर्तन। व्यवहार चतुष्क के धारकों का विवरण। चौदहपूर्वी के व्यवच्छेद होने पर व्यवहार चतुष्क का व्यच्छेद मानना मिथ्या |
तित्थोगाली में सूत्रों के व्यवच्छेद का विवरण। जीत व्यवहार के विविध प्रयोग ।
पांच प्रकार के व्यवहारों का गुणोत्कीर्तन | चार प्रकार के पुरुष - अर्थकर, मानकर, उभयकर, नोउभयकर का विवरण तथा शक राजा का दृष्टान्त |
चार प्रकार के पुरुष - गणार्थकर आदि तथा राजा
का दृष्टान्त ।
चार प्रकार के पुरुष - गणसंग्रहकर आदि । चार प्रकार के पुरुष - गणशोभकर आदि । चार प्रकार के पुरुष गणशोधिकर आदि । लिंग और धर्म के आधार पर चार प्रकार के पुरुष । गणसंस्थिति और धर्म के आधार पर चार प्रकार के पुरुष ।
प्रियधर्म और दृढधर्म के आधार पर पुरुषों के चार
प्रकार ।
चार प्रकार के आचार्य ।
चार प्रकार के अंतेवासी ।
तीन प्रकार की स्थविरभूमियां ।
तीन शैक्षभूमियां
परिणामक के दो प्रकार-आज्ञा परिणामक, दृष्टान्त परिणामक ।
आज्ञा परिणामक का विवरण।
दृष्टान्त परिणामक का स्वरूप।
दृष्टान्त परिणामक में विविध दृष्टान्तों द्वारा श्रद्धा
का उत्पादन ।
इन्द्रियावरण और विज्ञानावरण विषयक वर्णन । षड्जीवनिकाय में जीवत्व सिद्धि। जड़ के प्रकार और विवरण।
४६३६.
४६३७-४६४४.
४६४५.
४६४६-४६५१.
४६५२-४६५४.
४६५५-४६५९.
४६६०.
द्वादशवर्ष पर्याय वाले मुनि को अरुणोपपात, वरुणोपपात आदि पांच देवताधिष्ठित सूत्रों का अध्ययन विहित ।
अरुणोपपात आदि के परावर्तन से देवता की उपस्थिति ।
४६६३-४६६५. तेरह वर्ष की संयम पर्याय वाले मुनि के लिए उत्थान श्रुत आदि चार ग्रंथों का अध्ययन विहित तथा इन ग्रंथों के अतिशयों का कथन ।
चौदह वर्ष के संयम पर्याय वाले मुनि के लिए स्वप्नभावना ग्रंथ का अध्ययन विहित । पन्द्रह वर्ष के संयमपर्याय वाले मुनि के लिए चारणभावना ग्रंथ का अध्ययन विहित और उससे चारणलब्धि की उत्पत्ति का कथन ।
४६६८-४६७०. तेजोनिसर्ग आदि ग्रंथ के अध्ययन का संयम पर्याय काल और उन ग्रंथों का अतिशय ।
प्रकीर्णकों तथा प्रत्येक बुद्धों की संख्या का कथन । प्रकीर्णक को पढ़ाने से विपुल निर्जरा ।
आचारांग आदि अंगों के अध्ययन की विधि।
४६६१,४६६२.
४६६६.
४६६७.
४६७१.
४६७२,४६७३.
४६७४.
४६७५-४६८१.
४६८२,४६८३.
४६८४-४६८८.
४६८९.
४६९०.
४६९१.
४६९२.
४६९३.
४६९४.
जलमूक आदि व्यक्ति दीक्षा के अयोग्य । प्रव्रजित करने के विषय में व्यक्ति विशेष का विवरण |
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प्रव्रज्या की अल्पतम वय का निर्देश ।
आठ वर्ष से कम बालक में चारित्र की स्थिति नहीं, कारणों का निर्देश ।
आचारप्रकल्प - निशीथ के उद्देशन का कालमान। सूत्रकृतांग, स्थानांग आदि आगमों के अध्ययन की दीक्षा पर्यायकाल ।
दस प्रकार की वैयावृत्य और उनकी क्रियान्विति के तेरह पद ।
साधर्मिक के प्रति वैयावृत्त्य का विशेष निर्देश |
तीर्थंकर के वैयावृत्त्य का कथन क्यों नहीं ? शिष्य का प्रश्न और आचार्य का उत्तर ।
दस प्रकार के वैयावृत्त्य से एकान्त निर्जरा | ज्ञाननय और चरणनय का कथन ।
नय की परिभाषा ।
ज्ञाननय और क्रियानय में शुद्धनय कौन ? कल्प और व्यवहार के मूल भाष्य के अतिरिक्त सारा विस्तार पूर्वाचार्य कृत ।
भाष्य के अध्ययन की निष्पत्ति ।
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