Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 27 प्रश्न:- मूल-सूत्र में क्लीबे' अर्थात् 'नपुसंक में ऐसा उल्लेख क्यों किया गया है?
उत्तरः- इसका कारण यह है कि प्राकृत पुल्लिंग और स्त्रीलिंग वाले शब्दों में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति नहीं होती है; 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति केवल नपुसंकलिंग वाले शब्दों में ही जानना; ऐसा निश्चित विधान करने के लिये ही मूल-सूत्र में क्लीबे' पद का उल्लेख करना पड़ा है। जैसे:-- बालः बालो अर्थात् बालक और बाला-बाला अर्थात् लड़की। ये उदारहण क्रम से पुल्लिंग रूप और स्त्रीलिंग रूप हैं; इनमें प्रथमान्त एकवचन में 'म्' प्रत्यय का अभाव प्रदर्शित करते हुए यह बतलाया गया है कि प्रथमान्त एकवचन में नपुसंकलिंग में ही 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति होती है। अन्य लिंगों में नहीं।
प्रश्नः- मूल सूत्र में स्वरात्' शब्द के उल्लेख करने का विशेष तात्पर्य क्या है?
उत्तरः- संस्कृत में अकारान्त नपुसंकलिंग वाले शब्दों में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति होती है और अन्य इकारान्त-उकारान्त नपुसंकलिंग वाले शब्दों में इस प्राप्त प्रत्यय 'सि' के स्थानीय रूप 'म्' का लोप हो जाता है; परन्तु प्राकृत में ऐसा नहीं होता है; अतएव प्राकृत अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त सभी शब्दों में नपुसंकलिंगात्मक स्थिति में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति होती है। ऐसी विशेषता बतलाने के लिए ही मूल-सूत्र में 'स्वरात्' पद का उल्लेख किया गया है। जो कि 'अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त' का द्योतक है। यों प्रयुक्त शब्दों की विशेषता जान लेनी चाहिये।
वणं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१७२ में की गई है। पेम्मं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या २-९८ में की गई है। दहिं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-१९ में की गई है। महुँ रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-१९ में की गई है।
दधि संस्कृत प्रथमान्त एकवचनान्त रूप है। इसका प्राकृत रूप दहि होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'ध' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ४-४४८ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृत रूपवत् प्राप्त प्रत्यय 'सि' का लोप होकर दहि रूप सिद्ध हो जाता है। ___ मधु संस्कृत प्रथमान्त एकवचनान्त रूप है। इसका प्राकृत रूप महु होता है। इसकी साधनिका उपर्युक्त 'दहि' के
समान ही होकर महु रूप सिद्ध हो जाता है। ___ दधि संस्कृत प्रथमान्त एकवचनान्त रूप है। इसका 'आर्ष' प्राकृत रूप दहिँ होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'ध्' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२५ की वृत्ति से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में आर्ष प्राकृत में अनुनासिक' की प्राप्ति होकर 'दहिँ रूप सिद्ध हो जाता है। ___ मधु संस्कृत प्रथमान्त एकवचनान्त रूप है। इसका ‘आर्ष' प्राकृत रूप महुं होता है। इसकी साधनिका उपर्युक्त दहिँ के समान ही होकर महुँ रूप सिद्ध हो जाता है।
बालः संस्कृत प्रथमान्त एकवचनान्त रूप है। इसका प्राकृत रूप बालो होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-२ से प्रथमा विभक्ति की एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर बालो रूप सिद्ध हो जाता है।
बाला संस्कृत प्रथमान्त एकवचनान्त रूप है। इसका प्राकृत रूप भी बाला ही होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-४४८ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में स्त्रीलिंग में संस्कृत प्रत्यय 'सि-स्' की प्राप्ति और १-११ से प्राप्त हलन्त व्यंजन 'स्' का लोप होकर प्रथमान्त एकवचन रूप स्त्रीलिंग पद बाला सिद्ध हो जाता है ॥३-२५।।
जस-शस-इँ-इं-णयः सप्राग्दीर्घाः ॥३-२६।। क्लीबे वर्तमानानाम्नः परयोर्जस्-शसोः स्थाने सानुनासिक-सानुस्वाराविकारौ णिश्चादेशा भवन्ति सप्राग्दीर्घाः।
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