Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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132 : प्राकृत व्याकरण
शेष चार रूपों में सूत्र - संख्या १ - २७ से (बारहवें रूप से प्रारंभ करके पन्द्रहवें रूप तक में) षष्ठी विभक्ति बहुवचन बोधक प्रत्यय 'ण' का सद्भाव होने से इस प्रत्यय रूप 'ण' के अन्त में आगम रूप अनुस्वार की प्राप्ति होकर शेष चार 'अम्हाणं, ममाण, महाणं और मज्झाणं भी सिद्ध हो जाते हैं । । ३ -११४।।
मि मइ ममाइ मए मे ङिना।। ३-११५।
अस्मदो ङिना सहितस्य एते पञ्चादेशा भवन्ति ।। मि मइ ममाइ मए मे ठिअं ||
अर्थः- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अस्मद्' के सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङि=इ' की संयोजना होने पर 'मूल शब्द और प्रत्यय' दोनों के स्थान पर आदेश प्राप्त संस्कृत रूप 'मयि' के स्थान पर प्राकृत में (प्राकृत मूल शब्द और प्राप्त प्राकृत प्रत्यय दोनों के ही स्थान पर) क्रम से पांच रूपों की आदेश प्राप्ति हुआ करती है। वे आदेश प्राप्त पांचों ही रूप क्रम से इस प्रकार हैं: - (मयि = ) मि, मइ, ममाइ मए और मे अर्थात् मुझ पर अथवा मेरे में। उदाहरण इस प्रकार हैं:- मयि स्थितम् - मि - मइ - ममाइ - मए मे ठिअं अर्थात् मुझ पर अथवा मेरे में स्थित है।
'मयि' संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त त्रिलिंगात्मक सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप 'मि, मइ, ममाइ, मए और में' होते हैं। इसमें सूत्र - संख्या ३-११५ से सप्तमी विभक्ति एकवचन में संस्कृत शब्द 'अस्मद्' में संप्राप्त प्रत्यय 'ङि=इ' की संयोजना होने पर प्राप्त रूप 'मयि' के स्थान पर उक्त पांचों रूपों की क्रम से प्राकृत में आदेश प्राप्ति होकर ये पाँचों रूप 'मि, मइ, ममाइ, मए और में' सिद्ध हो जाते हैं।
'ठिअ' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - १६ में की गई है।।३ - ११५ ।। अम्ह-मम-मह मज्झा ङौ । । ३ - ११६ ।।
अस्मदो ङौ परत एते चत्वार आदेशा भवन्ति । डेस्तु यथा प्राप्तम् ।। अम्हम्मि ममम्मि महम्मि मज्झम्मि ठिअं|| अर्थः- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अस्मद्' के प्राकृत रूपान्तर में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङि=इ' के प्राकृत प्रत्यय सूत्र - संख्या ३ - ११ से प्राप्त 'म्मि' प्रत्यय की संयोजना होने पर संस्कृत शब्द 'अस्मद्' के स्थान पर प्राकृत में चार अंग रूपों की आदेश प्राप्ति हुआ करती है एवं तत्पश्चात् सप्तमी एकवचनार्थ में उन आदेश प्राप्त अंग रूपों में 'म्मिं प्रत्यय की संयोजन हुआ करती है। उक्त विधानानुसार 'अस्मद्' के प्राप्तव्य प्राकृत चार अंग रूप इस प्रकार है: - अस्मद् = अम्ह, मम, मह और मज्झ । उदाहरण इस प्रकार है:- मयि स्थितम् = अम्हम्मि ममम्मि महम्मि- मज्झम्मि ठि अर्थात् मुझ पर अथवा मेरे में स्थित है।
'मयि' संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त (त्रिलिंगात्मक) सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप 'अम्हम्मि, ममम्मि, महम्मि और मज्झम्मि' होते हैं। इनमें सूत्र - संख्या ३ - ११६ से सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत शब्द 'अस्मद्' के स्थान पर प्राकृत में उक्त चार 'अम्ह, मम, मह और मज्झ' अंग रूपों की आदेश प्राप्ति एवं तत्पश्चात् सूत्र - संख्या ३ - ११ से इन चारों प्राप्तागों में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङि-इ' के स्थान पर प्राकृत में 'म्मि' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होकर क्रम से चारों रूप अम्हम्मि, ममम्मि, महम्मि और मज्झम्मि' सिद्ध हो जाते हैं।
'ठिअ' रूप की सिद्धि - सूत्र - संख्या ३-१६ में की गई है । ३-११६ ॥
सुपि।। ३-११७।।
अस्मदः सुपि परे अम्हादयश्चत्वार आदेशा भवन्ति ।। अम्हेसु ममेसु महेसु । मज्झेसु । एत्व विकल्पमते तु । अम्हसु । ममसु । महसु मज्झसु । अम्हस्यात्वमपीच्छत्यन्येः। अम्हासु॥
अर्थः-संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अस्मद्' के प्राकृत रूपान्तर में सप्तमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय सुप=सु समान ही प्राकृत में भी प्राप्त प्रत्यय 'सु' की संयोजना होने पर संस्कृत शब्द 'अस्मद्' के स्थान पर प्राकृत में चार अंग
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