Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 403
________________ 370 : प्राकृत व्याकरण अस्पृश्य संसर्गस्य विट्टालः ॥ जे छड्डे विणु रयण निहि अप्परं तडि घल्लन्ति ।। तहं सङ्ग्रहं विट्टालु परू फुक्किज्जन्त भमन्ति ।। ३॥ भयस्य द्रवक्कः ।। दिवेहिं विढत्तउं खाहि, वढ संचि म एक्कु वि द्रम्मु । को वि द्रवक्कउ सो पडइ, जेण समप्पइ जम्मु ॥ ४ ॥ आत्मीयस्य अप्पणः।। फोडेन्ति जे हिअडउं अप्पणउ।। दृष्टे द्रॊहिः।। एकमेक्कउं जइ वि जोएदि हरि सुटु सव्वायरेण । । तो वि हि जहिं कहिं वि राही ।। को सक्कइ संवर वि दड्ढ नया नेहि पलुट्टा ॥ ५ ॥ गाढस्य निच्चट्टः || विहवे कस्सु थिरत्तणउं, जोव्वणि कस्सु मरट्टु । सो लेखडउ पठाविअइ, जो लग्गइ निच्चट्डु ।। ६ ।। असाधारणस्य सड्ढलः॥ कहिं ससहरू कहिं मयरहरू कहिं बरिहिणु कहिं मेहु।। दूर-ठिआहं वि सज्ज हं होइ असड्ढलु नेहु ॥ ७॥ कौतुक्स्य कोड्डः ।। कुञ्जरू अन्नहं तरू-अरहं कोड्डेण घल्लुइ हत्थु ।। मणु पुणु एक्कहिं सल्लइहि जइ पुच्छह परमत्थु ॥ ८ ॥ क्रीडायाः खेड्ढः।। खेड्डूयं कय मम्हेहिं निच्छयं किं पयम्पह || अणुरत्ताउ भत्ताउ अम्हे मा चय सामि ।। ९॥ रम्यस्य रवण्णः ॥ सरिहिं न सरेहिं, न सरवेरेहिं नवि उज्जाण वणेहि ।। देस रवण्णा होन्ति, वढ ! निवसन्तेहिं सु-अणेहि ।। १० ।। अद्भुतस्य ढक्करिः। हिअडा पइं एहु बोल्लिअओ महु अग्गइ सय-वार ।। फुट्टिसु पिए पवसन्ति हउं भण्डय ढक्करि-सार । । ११ ।। हे सखीत्यस्य हेल्लिः हेल्लि ! म झङ्ख हि आलु । । पृथक् पृथगित्यज्ञस्य जुअं जुअ: ।। एक्क कुडुल्ली पञ्चहिं रूद्धी तहं पञ्चहं वि जुअं जुअ बुद्धी || बहिणु तं घरू कहि किवँ नन्दउ जेत्थु कुडुम्बरं अप्पण - छंदउ ॥१२॥ मूढस्य नालिअ - वढौ।। जो जिस फसिहूअउ चिन्तइ देई न दम्मु ने रूअउ ।। रइ वस- भमिरू करग्गुल्लालिउ घरहिं जि कोन्तु गुणइ सो नालिउ ॥ १३ ॥ दिवेहिं विढत्तरं खाहि वढ ।। नवस्य नवखः नवखी कवि विस-गण्ठि ।। अवस्कन्दस्य दडवडः ॥ चलेहि चलन्तेहि लोअणेहिं जे तई दिट्ठा बालि ।। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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