Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 414
________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 381 है, उसका पति लज्जावान् है, वह (रणक्षेत्र के मोर्चे पर) देश के सीमान्त-भाग पर रहा हुआ है; और अपने प्रचंड बाहुबल का प्रदर्शन कर रहा है। इस गाथा में 'बाहु-बलुल्लडा' पद में 'डुल्लडड-उल्लड' ऐसे दो स्वार्थिक-प्रत्ययों की संप्राप्ति एक साथ प्रदर्शित की गई है।। 'डुल्ल+डड'- इन दोनों प्रत्ययों में आदि में अवस्थित प्रत्येक 'डकार' वर्ण इत्संज्ञक है इसलिये इनका लोप हो जाता है और शेष रूप में 'उल्ल+अड' रहता है। तत्पश्चात् पुनः सूत्र-संख्या १-१० से 'ल्ल' में स्थित अन्त्य 'अकार' का भी लोप होकर तथा दोनों की संधि होकर 'उल्लड' प्रत्यय के रूप में इनकी स्थिति बनी रह जाती है। 'बाहु-बलुल्लडा' पद में स्थित अन्त्य स्वर 'आ' की प्राप्ति सूत्र-संख्या ४-३३० के कारण से हुई है। जैसा कि उसमें उल्लेख है कि अपभ्रंश भाषा में संज्ञाओं में विभक्ति-वाचक प्रत्ययों की संयोजना होने पर प्रत्ययान्त-स्थित स्वर कभी हस्व से दीर्घ हो जाते हैं और कभी दीर्घ से हस्व भी हो जाते हैं। (४) बाहु बलं बाहु-बलुल्लडउ भुजा के बल को। इस पद में 'डल्ल+डड+अ'-उल्ल+अड+अ-उल्लडअ' यों तीनों स्वार्थिक प्रत्ययों की एक साथ आगम-स्थिति स्पष्ट की गई है।अन्तिम स्वार्थिक प्रत्यय 'अ' में विभक्ति-वाचक प्रत्यय 'उ' की संयोजना होने से उसका लोप हो गया है।।४-४३०।। स्त्रियां तदन्ताड्डीः ।।४-४३१।। अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमानेभ्यः प्राक्तन-सूत्र-द्वयोक्त-प्रत्ययान्तेभ्यो डीः प्रत्ययो भवति।। पहिआ दिट्ठी गोरडी, दिट्ठी मग्गु निअन्त।।। अंसूसासेहिं कञ्चुआ तिंतुव्वाणं करन्त।।१।। एक कुडुल्ली पञ्चहिं रूद्वी।। अर्थः-त्पर उल्लिखित सूत्र-संख्या ४-४२९ और ४ - ४३० में जिन प्रत्ययों की प्राप्ति का संविधान किया गया है; उन प्रत्ययों को यदि स्त्रीलिंग वाचक संज्ञाओं में जोड़ा जाय तो ऐसी स्थिति में उन प्रत्ययों के अन्त में अपभ्रंश-भाषा में 'डी-ई' प्रत्यय की विशेष-प्राप्ति (स्त्रीलिंग-अवस्था में) हुआ करती है। उपरोक्त रीति से प्राप्त प्रत्यय 'डी' में 'डकार' वर्ण इत्संज्ञक है, तदनुसार उन स्त्रीलिंग-वाचक संज्ञाओं में जुड़े हुए स्वार्थिक प्रत्ययों में अवस्थित अन्तिम स्वर का लोप हो जाता है और तत्पश्चात् हलन्त रूप से रहे हुए उन स्वार्थिक प्रत्ययों वाले संज्ञा शब्दों में इस 'ई' प्रत्यय की संधि योजना होकर वे संज्ञा-शब्द ईकारान्त स्त्रीलिंग वाले हो जाते हैं। (१) जैसेः-गौरी-गोर+डड-(अड) +ई-गोरडी-पत्नी। (२) कुटी-कुडी+डुल्ल+ई=कुडुल्ली-झोंपड़ी। पुरी गाथा का अनुवाद यों हैं:(१)संस्कृत :पथिक ! दृष्टा, गौरी दृष्टा मार्गमवलोकयन्ती। अश्रूच्छ्वासैः कञ्चुकं तिमितोद्वानं (आद्र शुष्क) कुर्वती।। हिन्दी:-विदेश में अवस्थित कोई विरही यात्री से पूछता है कि-'अरे मुसाफिर ! क्या तुमने मेरी पत्नी को देखा था ?' इस पर वह उत्तर देता है कि-'हाँ' देखी थी। वह उस मार्ग को टकटकी लगा कर देख रही थी, जिस (मार्ग) से कि तुम्हारे आगमन की सम्भावना थी। तुम्हारे वियोग में वह अपने अश्रु-जल से अपनी कंचुकी को भीगो रही थी तथा पुनः वह भीगी हुई कंचुकी उसके ऊंचे-ऊंचे और गरम श्वासोच्छ्वास से सूखती भी जाती है। ऐसी अवस्था में मैंने तुम्हारी गोरडी-पत्नी को देखा था।।१।। (२) एका कुटी पञ्चभिः रूद्धा-एक कुडुल्ली पनचहिं रूद्धी एक छोटी सी झोंपडी और वह भी पाँच के द्वारा रूंधी हुई है।।४-४३१।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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