Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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382 : प्राकृत व्याकरण
आन्तान्ताड्डाः ।।४-४३२॥ अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमानादप्रत्ययान्त-प्रत्ययान्तात् डा प्रत्ययो भवति।। ड्यपवादः।। पिउ आइउ सुअ वत्तडी झुणि कन्नडइ पइट्ट।। तहो विरहहो नासन्त अहो धूलडिआ वि न दिट्ट।।१।।
अर्थः-अपभ्रंश-भाषा में स्त्रीलिंग में रहे हुए संज्ञा शब्दों में स्वार्थिक प्रत्यय लगने के पश्चात् (स्त्रीलिंग-बाधक प्रत्यय) 'डा=आ' प्रत्यय की प्राप्ति (भी) होती है। 'डा' प्रत्यय में अवस्थित 'डकार' वर्ण इत्संज्ञक होने से स्वार्थिक प्रत्यय से संयोजित स्त्रीलिंग शब्दो के अन्त्य स्वर का लोप होकर तत्पश्चात् ही 'आ' प्रत्यय जुड़ता है। यह 'डा आ' प्रत्यय उपरोक्त सूत्र-संख्या ४-४३१ के प्रति अपवाद्-सूचक स्थिति वाला है। जैसे:
(१) वार्तिका=वत्तडिआ बात।
(२).धूलिः धूलडिआ धूलि-रजकण। इन उदाहरणों में 'डा=आ' प्रत्यय की संप्राप्ति देखी जाती है। गाथा का पूरा अनुवाद यों हैं:संस्कृत : प्रियः आयातः, श्रुता वार्ता, ध्वनिः कर्णे प्रविष्टः।।
तस्य विरहस्य नश्यतः, धूलिरपि न दृष्टा।।१।। हिन्दी:-प्रियतम प्राणपति लौट आये हैं; (ऐसे) समाचार मैंने सुने है।। उनकी आवाज भी मेरे कानों में पहुँची है। (इस प्रकार की परिस्थिति उत्पन्न होने पर ) उनके विरह से उत्पन्न हुए दुख के नाश हो जाने से (अब उस दुःख की) धूलि भी (अर्थात् सामान्य अंश भी) दृष्टि-गोचर नहीं हो रहा है। (अब वह दुःख पूर्णतया शान्त हो गया है)।।४-४३२।।
अस्येदे।।४-४३३।। अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमानस्य नाम्नो योकारस्तस्य आकारे प्रत्यये परे इकारो भवति।। धूलडिआ वि न दिट्ठ।। स्त्रियामित्येव। झुणि कन्नडइ पइट्ट।।
अर्थ:-अपभ्रंश-भाषा में स्त्रीलिंग वाले संज्ञा शब्दों के अन्त में अवस्थित 'अकार' को 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति होने के पूर्व 'इकार' वर्ण की प्राप्ति हो जाती है। अर्थात् अन्त्य अकार 'आ' के पहिल 'इकार' में बदल जाता है। जैसे:- धूलि:-धूलि डड-धूलड; धूलड+आ-धूलडिया। यहाँ पर 'धूलड' शब्द में अन्त्य अकार' को 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति होने पर 'इकार' वर्ण की प्राप्ति हो गई है। (पूरे गाथा-चरण के लिये सूत्र-संख्या ४-४३२ देखें।)
प्रश्नः- वृत्ति में ऐसा क्यों लिखा गया है कि स्त्रीलिंगवाले शब्दों में ही 'अकार' को 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति के पूर्व 'इकार' वर्ण की प्राप्ति होती है? ___ उत्तरः-यदि स्त्रीलिंगवाले शब्दों के अतिरिक्त पुल्लिंग अथवा नपुंसकलिंग वाले शब्द होगें तो उनमें अवस्थित अन्त्य 'अकार' को 'इकार' की प्राप्ति नहीं होगी। __ जैसे:-ध्वनिः कर्णे प्रविष्टः-झुणि कन्नडइ पइटु आवाज कान में प्रविष्ट हुई। यहाँ पर 'कन्नड' शब्द में अन्त्य 'अकार' को 'इकार' की प्राप्ति नहीं हुई है।।४-४३३
युष्मदादेरीयस्य डारः॥४-४३४।। अपभ्रंशे युष्मदादिभ्यः परस्य ईय प्रत्ययस्य डार इत्यादेशो भवति।। संदेसें काई तुहारेण, जं सङगहो न मिलिज्जइ।। सुइणन्तरि पिएं पाणिएण पिअ! पिआस किं छिज्जइ।।१।। दिक्खि अम्हारा कन्तु। बहिणि महारा कन्तु।
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