Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 201 भविष्यति हिरादिः ।।३-१६६।। भविष्यदर्थे विहिते प्रत्यये परे तस्येवादिर्हिः प्रयोक्तव्यः।। होहिइ। भविष्यति भविता वेत्यर्थः।। एवं होहिन्ति। होहिसि। होहित्था। हसिहिइ। काहिइ।। __ अर्थः-संस्कृत-भाषा में भविष्यतकाल के दो भेद पाये जाते हैं; एक तो अनद्यतन भविष्यत अर्थात् लुट्लकार और दूसरा सामान्य भविष्यत् अर्थात् लुटलकार; किन्तु प्राकृत भाषा में दोनों प्रकार के भविष्यत्कालवाचक लकारों के स्थान पर एक ही प्रकार के प्रत्ययों का प्रयोग होता है। प्राकृत भाषा में भविष्यत्कालवाचक रूपों के निर्माण करने की सामान्य विधि इस प्रकार है कि सर्वप्रथम धातु के मूल अंग के आगे 'हि' प्रत्यय जोड़ा जाता है और तत्पश्चात् जिस पुरुष के जिस वचन का रूप बनाना हो उसके लिये उसी पुरुष के उसी वचन के लिये कहे गये वर्तमानकाल-द्योतक पुरुष-बोधक प्रत्यय लगा देने से भविष्यत्कालवाचक रूप का निर्माण हो जाता है। तदनुसार भविष्यत्कालवाचक प्रत्ययों की सामान्य स्थित इस प्रकार से होती है:एकवचन
बहुवचन प्रथम पुरुष - हिइ, हिए
हिन्ति हिन्ते, हिइरे द्वितीय पुरूष - हिसि, हिसे
हित्था, हिह। तृतीय पुरूष - हिमि
हिमो, हिमु, हिम। तृतीय पुरुष के एकवचन में तथा वैकल्पिक रूप से अन्य प्रत्यय भी होते हैं; उनका वर्णन आगे सूत्र-संख्या ३-१६७; ३-१६८ और ३-१६९ आदि में किया जाने वाला है। इस प्रकार ग्रंथकार का तात्पर्य यही है कि भविष्यत्काल के अर्थ में धातु में सर्वप्रथम 'हि' का प्रयोग किया जाना चाहिये; तत्पश्चात् वर्तमानकाल-बोधक प्रत्ययों की संयोजना की जानी चाहिये। जैसे:-भविष्यति अथवा भविता-होहिइ होगा अथवा होने वाला होगा। भविष्यन्ति अथवा भवितारः-होहिन्ति होंगे अथवा होने वाले होंगे। भविष्यसि अथवा भवितासि-होहिसि-तू होगा अथवा तू होने वाला होगा। भविष्यथ अथवा भवितास्थ-होहित्था-तुम होंगे अथवा तुम होने वाले होंगे। हासिष्यति अथवा हसिता-हसिहिइ-वह हँसने वाला होगा। करिष्यति अथवा कर्ता काहिइ-वह करेगा अथवा करने वाला होगा। इन उदाहरणों से प्रतीत होता है कि संस्कृत में प्राप्त भविष्यत्कालवाचक लुटलकार और लुट्लकार के स्थान पर प्राकृत में केवल एक ही लकार होता है तथा इसी सामान्य लकार के आधार से ही भविष्यत्कालवाचक दोनों लकारों का अर्थ प्रतिध्वनित हो जाता है। ___ भविष्यति अथवा भविता संस्कृत के क्रमशः भविष्यत्कालवाचक लुट्लकार और लुट्लकार के प्रथमपुरुष के एकवचन के रूप हैं। इनका प्राकृत रूप होहिइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-६० से मूल संस्कृत-धातु 'भ् भव्' के स्थान पर प्राकृत में 'हो' अंग-रूप की प्राप्ति; ३-१६६ से भविष्यत्काल के अर्थ में प्राप्तांग 'हो' में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-१३९ से भविष्यत्काल के अर्थ में प्राप्तांग 'होहि' में प्रथमपुरुष के एकवचन के अर्थ में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप होहिइ सिद्ध हो जाता है।
भविष्यन्ति, भवितारः संस्कृत के भविष्यत्कालवाचक लट्लकार और लुट्लकार के प्रथमपुरुष के बहुवचन के रूप हैं। इनका प्राकृत रूप (एक ही) होहिन्ति होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-६० से मूल-संस्कृत धातु 'भू=भव्' के स्थान पर प्राकृत में 'हो' अङ्ग रूप की प्राप्ति; ३-१६६ से भविष्यत्काल के अर्थ में प्राप्तांग 'हो' में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-१४२ से भविष्यत्काल के अर्थ में प्राप्तांग। 'होहि' में प्रथमपुरुष के बहुवचन के अर्थ में 'न्ति' प्रत्यय की प्राप्ति होकर होहिन्ति रूप सिद्ध हो जाता है।
भविष्यसि अथवा भवितासि संस्कृत के क्रमशः भविष्यत्कालवाचक लुट्लकार और लुट्लकार के द्वितीय पुरुष के एकवचन के रूप है। इनका प्राकृत रूप (समान रूप से) होहिसि होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-६० से मूल संस्कृत धातु भू=भव' के स्थान पर प्राकृत में 'हो' अङ्ग रूप की प्राप्ति; ३-१६६ से भविष्यत्काल के अर्थ में प्राप्तांग 'हो' में 'हि' प्रत्यय
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