Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 341
'अम्' का द्दष्टान्त इस प्रकार है:-माम् मुञ्चतस्तव मई मेल्लन्तहो तुन्झ=मुझ को छोड़ते हुए तेरी। (पूरी गाथा सूत्र-संख्या ४-३७० में दी गई है)।। गाथा के इस चरण में 'माम् पद के स्थान पर 'मई पद प्रदर्शित किया गया है।।४-३७७।।
अम्हेहिं भिसा।।४-३७८।। अपभ्रंशे अस्मदो भिसा सह अम्हेहिं इत्यादेशो भवति।। तुम्हेहिं अम्हेहिं जं किअउं।।
अर्थः-अपभ्रंश भाषा में 'अस्मद्' सर्वनाम शब्द के साथ में तृतीया विभक्ति के बहुवचन वाले प्रत्यय 'भिस्' का संयोग होने पर मूल शब्द 'अस्मद् और प्रत्यय भिस्' दोनों के स्थान पर 'अम्हेहिं' ऐसे एक ही पद की नित्यमेव आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:- युष्माभिः अस्माभिः यत् कृतम्=तुम्हेहिं अम्हेहिं जं किअउं-तम्हारे से, हमारे से जो किया गया है।।४-३७८।।
महु मज्झ ङसि-ङस-भ्याम्॥४-३७९।। अपभ्रंशे अस्मदो उसिना उसा च सह प्रत्येकं महु मज्झु इत्यादेशौ भवतः।। महु होन्तउ गदो। मज्झु होन्तउ गदो।। उसा।
महु कन्तहो बे दोसडा, हेल्लि ! म झङ्खहि आलु। देन्तहो हउं पर उव्वरिअ जुज्झन्तहो करवालु।। जइ भग्गा पारक्कडा तो सहि ! मज्झु पिएण। अह भग्गा अम्हहं तणा तो तें मारिअडेण।।
अर्थः-अपभ्रंश भाषा में 'मैं-हम' वाचक सर्वनाम शब्द 'अस्मद्' के साथ में पंचमी विभक्ति के एकवचन में 'उसि' प्रत्यय की संयोजना होने पर मूल शब्द 'अस्मद्' और प्रत्यय 'ङसि' दोनों ही के स्थान पर नित्यतमेव 'महु'
और 'मज्झु' ऐसे दो पद-रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:- मत्-महु और मुज्झु-मुझसे अथवा मेरे से। इसी प्रकार से इसी सर्वनाम शब्द "अस्मद्" के साथ में षष्ठी विभक्ति के एकवचन के प्रत्यय "डस्" का संबंध होने पर उसी प्रकार से मूल शब्द "अस्मद्" और प्रत्यय "उस्" दोनों ही के स्थान पर वैसे ही 'मह' और 'मज्झ' ऐसे समान रूप से ही इन दोनों पद रूपों की सदा ही आदेश प्राप्ति जानना चाहिये। जैसे:-मम अथवा मे अथवा मज्झु-मेरा, मेरी, मेरे। वृत्ति में आया हुआ पञ्चमी-अर्थक उदाहरण यों है:- मत् भवतु गतः महु होन्तउ गदो अथवा मज्झु होन्तउ गदो-मेरे से (अथवा मेरे पास से) गया हुआ होवे।। षष्ठी-अर्थक उदाहरण गाथाओं में दिया गया है; जिनका अनुवाद क्रम से यों है:संस्कृत : मम कान्तस्य द्वौ दोषो, सखि ? मा पिधेहि अलीकम्।।
ददतः परं अहं उर्वरिता, युध्यमानस्य करवालः।।१।। हिन्दी:-हे सखि ! मेरे प्रियतम पति में केवल दो ही दोष है; इन्हें तु व्यर्थ ही मत छिपा। जब वे दान देना प्रारम्भ करते हैं, तब केवल मैं ही बच रह जाती हूँ अर्थात् मेरे सिवाय सब कुछ दान में दे देते है और जब वे युद्ध क्षेत्र में युद्ध करते हैं तब केवल तलवार ही बची रह जाती है और सभी शत्रु नाम-शेष रह जाते है।। इस गाथा में 'मम=मेरे अर्थ में 'मह' आदेश-प्राप्ति पद-रूप का प्रयोग किया गया है।।१।। संस्कृत : यदि भग्नाः परकीयाः, तत् सखि ! मम प्रिंयेण।।
अथ भग्नाः अस्मदीयाः, तत् तेन मारितेन।। २।। हिन्दी:-हे सखि ! यदि शत्रु-गण मृत्यु को प्राप्त हो गये हैं अथवा (रण-क्षेत्र को छोड़कर के) भाग गये है; तो (यह सब विजय) मेरे प्रियतम के कारण से (ही है) अथवा यदि अपने पक्ष के वीर पुरूष रण-क्षेत्र को छोड़ कर भाग खड़े हुए हैं तो (समझो कि) मेरे प्रियतम के वीर गति प्राप्त करने के कारण से (ही वे निराश होकर रण क्षेत्र को छोड़ आये हैं)।।२।। __ इस गाथा में 'मम='अर्थ में 'मज्झु' ऐसे आदेश प्राप्त पद-रूप का प्रयोग प्रदर्शित किया गया है।।४-३७९ ।।
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