Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 351 हिन्दी:- 'राहु' द्वारा चन्द्रमा को ग्रहण किया जाता हुआ जब असती अर्थात् काम-भावनाओं से युक्त स्त्रियों द्वारा देखा गया, तब उन्होंने निडर होकर हंसते हुए कहा कि-'हे राहु ! प्रिय जनों में 'विक्षोभ-घबराहट' पैदा करने वाले इस चन्द्रमा को त निगल जा-निगल जा। इस गाथा में 'विक्षोभ कर के स्थान पर 'विच्छोह-गरू' पद का रूपान्तर करते हुए 'क' के स्थान पर 'ग' की प्राप्ति प्रदर्शित की गई है।।१।। संस्कृत : अम्ब ! स्वस्थावस्थेः सुखेन चिन्त्यते मानः।।
प्रिये द्दष्टे व्याकुलत्वेन ( हल्लोहल ) कश्चे तयति आत्मानम्॥ २॥ हिन्दी:-हे माता ! शान्त अवस्था में रहे हुए व्यक्तियों द्वारा ही सुख पूर्वक आत्म-सम्मान का विचार किया जाता है किन्तु जब प्रियतम दिखाई पड़ता है अथवा उसका मिलन होता है तब भावनाओं के उमड़ पड़ने के कारण से उत्पन्न हुई व्याकुलता की स्थिति में कौन अपने (सम्मान) को सोचता है-विचारता है ? ऐसी स्थिति में तो 'मिलने' की उतावलता-हल्लोहलपना रहता है। इस गाथा में 'सुखेन' के स्थान पर 'सुधिं' का रूपान्तर करते हुए 'ख' अक्षर के स्थान पर 'घ' अक्षर की प्राप्ति का बोध कराया गया है।। २।। संस्कृत : शपथं कृत्वा कथितं मया, तस्य परं सफलं जन्म।।
यस्य न त्यागः, नाच आग्भटी, नाच प्रमृष्टः धर्मः।। ३।। हिन्दी:- जिसने न तो त्याग-वृत्ति छोड़ी है, न सैनिक-वृत्ति का ही परित्याग किया है और न विशुद्ध धर्म को ही छोड़ा है; उसी का जन्म विशिष्ट रूप से सफल, है; ऐसी बात मुझसे शपथ पूर्वक कही गई है।
। गाथा में 'शपथं के स्थान पर 'सबध': 'कथितं' के स्थान पर 'कधिद' और 'सफल' के स्थान पर 'सभलउं' लिख कर यह सिद्ध किया है कि 'प' के स्थान पर 'ब'; 'थ' के स्थान पर 'ध' और 'त' के स्थान पर 'द' तथा 'फ' के स्थान पर 'भ' की प्राप्ति अपभ्रंश भाषा में होती है।। ३।।। प्रश्न:-'क-ख-त-थ-प-फ' अक्षर पद के आदि में नहीं होने चाहिये; ऐसा विधान क्यों किया गया है ?
अत्तर:-यदि उक्त अक्षरों में से कोई भी अक्षर पद के आदि में रहा हुआ होगा तो उसके स्थान पर आदेश रूप से प्राप्तव्य अक्षर 'ग-घ-द-ध-ब-भ' की आदेश प्राप्ति नहीं होगी। जैसे:-कृत्वा करेप्पिणु-करके; यहाँ पर 'क' वर्ग के आदि में है, अतः इसके स्थान पर 'ग' अक्षर की आदेश प्राप्ति नहीं होगी। यों आदि में स्थिति को भी समझ लेना चाहिये।
प्रश्न:- यदि ‘क-ख-त-थ-प-फ' अक्षर स्वर के पश्चात् रहे हुए होगें, तभी इनके स्थान पर 'ग-घ-द-ब-भ' अक्षरों की क्रम से प्राप्ति होगी; ऐसा भी क्यों कहा गया है ?
उत्तरः- यदि ये स्वर के पश्चात् नहीं रहे होंगे तो इनके स्थान पर आदेश-रूप से प्राप्तव्य अक्षरों की आदेश प्राप्ति भी नहीं होगी, ऐसी अपभ्रंश-भाषा में परंपरा है; इसलिये स्वर से परे होने पर ही इनके स्थान पर उक्त अक्षरों की आदेश-प्राप्ति होगी; ऐसा समझना चाहिये। जैसः- मृगाङकम्-मयङ्कु-चन्द्रमा को। इस उदाहरण में हलन्त व्यञ्जन 'ङ' के पश्चात् 'क' वर्ण आया हुआ है जो कि 'स्वर' के परवर्ती है इसलिये 'क' के स्थान पर 'ग' वर्ण की आदेश-प्राप्ति नहीं हुई है। यों अन्य उक्त शेष अक्षरों के सम्बन्ध में भी 'स्वर-परवर्तित्व' के सिद्धान्त को ध्यान में रखना चाहिये।
प्रश्न:- असंयुक्त अर्थात् हलन्त रूप से नहीं होने पर ही 'क-ख-त-थ-प-फ' के स्थान पर 'ग-घ-द-ध-ब-भ' व्यंजनों की क्रम से आदेश प्राप्ति होती है। ऐसा क्यों कहा गया है ?
उत्तर:-यदि 'क-ख-त-थ-प-फ' व्यञ्जन पूर्ण नहीं है अर्थात् स्वर से रहित होकर अन्य किसी दुसरे व्यञ्जन के साथ में ये अक्षर रहे हुए होंगे तो इनके स्थान पर 'ग-घ-द-ध-ब-भ' व्यजनों की क्रम से प्राप्तव्य आदेश प्राप्ति नही होगी; ऐसी अपभ्रंश भाषा में परपंरा है; इसलिये 'असंयुक्त स्थिति का उल्लेख और सद्भाव किया गया है। जैसे:- एकस्मिन अक्षिण श्रावणः= एक्कहिं अक्खिहिं सावणु-एक आँख में श्रावण (अर्थात् आँसुओं की झड़ी) है।
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