Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 339 उल्लेख नहीं होने पर भी शब्द-व्युत्पत्ति को समझाने के लिये चतुर्थी विभक्ति की आदेश-प्राप्ति भी समझा दी गई है। वृत्ति में दिये गये उदाहरणों का स्पष्टीकरण यों हैं:
(१) युष्मत् भवतु आगतः=तुम्हह होन्तउ आगदो-तुम्हारे से- (आपसे) आया हुआ (प्राप्त हुआ) होवे। (२) युष्मभ्यम् करोमि धनुः-तुम्हहं केरउं धणु=मैं तुम्हारे लिये धनुष्य करता हूँ। (३) युष्माकम् करोमि धनुः-तुम्हहं केरउं धणु-मैं तुम्हारे-आपके-धनुष्य को करता हूँ।।४-३७३।।
तुम्हासु सुपा।।४-३७४।। अपभ्रशे युष्मदः सुपा सह तुम्हासु इत्यादेशौ भवति।। तुम्हासु ठि।। __ अर्थः-अपभ्रंश भाषा में 'युष्मद्' सर्वनाम शब्द में सप्तमी विभक्ति बहुवचन बोधक प्रत्यय 'सुप्' का संयोग होने पर मूल शब्द 'युष्मद् और प्रत्यय 'सुप' दोनों के स्थान पर नित्यमेव 'तुम्हासु' ऐसे पद रूप की आदेश प्राप्ति है। जैसे:- युष्मासु स्थितम्-तुम्हासु ठिअं-तुम्हारे पर अथवा तुम्हारे में रहा हुआ है। आप पर अथवा आप में स्थित है।।४-३७४।।
सावस्मदो हउ।।४-३७५।। अपभ्रंशे अस्मदः सौ परे हउं इत्यादेशोभवति।। तसु हउं कलिजुगि दुल्लहहो।
अर्थः-अपभ्रंश भाषा में 'मैं-हम' वाचक 'अस्मद्' सर्वनाम शब्द में प्रथमा विभक्ति के एकवचन बोधक प्रत्यय 'सि' का संयोग होने पर मूल शब्द 'अस्मद्' और प्रत्यय 'सि' दोनों के स्थान पर नित्यमेव 'हउं' पद रूप की आदेश प्राप्ति है। जैसे:- तस्य अहं कलियुगे दुर्लभस्य-तसु हउं कलिजुगि दुल्लहहो उस दुर्लभ का मैं कलियुग में (पूरी गाथा सूत्र-संख्या ४-३३८ में दी गई है।) यों 'मैं' अर्थ में 'हउं' का प्रयोग होता है।।४-३७५ ।।
जस्-शसोरम्हे अम्हइं।।४-३७६॥ अपभ्रंशे अस्मदो जसि शसि च परे प्रत्येकम् अम्हे अम्हई इत्यादेशो भवतः॥ अम्हे थोवा रिउ बहुअ कायर एम्व भणति।। मुद्धि ! निहालहि गयण-यलु कइ जण जोण्ह करन्ति।।१।। अम्बणु लाइवि जे गया पहिअ पराया के वि।। अवस न सुअहिं सुहच्छिअहिं जिवं अम्हई तिवं ते वि।। २॥ अम्हे देक्खइ। अम्हइं देक्खइ। वचन भेदो यथासंख्यनिवृत्त्यर्थः।।
अर्थ:-अपभ्रंश भाषा में 'अस्मद्' सर्वनाम शब्द के साथ में प्रथमा विभक्ति के बहुवचन बोधक प्रत्यय 'जस्' की संप्राप्ति होने पर मूल शब्द 'अस्मद्' और प्रत्यय 'जस्' दोनों के स्थान पर नित्यमेव 'अम्हे' और 'अम्हई' ऐसे दो पद रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:- वयम् अम्हे अथवा अम्हइं हम इसी प्रकार से इसी 'अस्मद्' सर्वनाम शब्द के साथ में द्वितीया विभक्ति के बहुवचन को बतलाने वाले प्रत्यय 'शस्' का संयोग होने पर इस 'अस्मद्' शब्द और 'शस्' प्रत्यय दोनों के स्थान पर सदा ही 'अम्हे और अम्हइं ऐसे प्रथमा बहुवचन के समान ही दो पद-रूपों की प्राप्ति का विधान जानना चाहिये। जैसे:-अस्मान (अथवा नः) अम्हे और अम्हइं हमको अथवा हम।। गाथाओं का अनुवाद यों हैं:संस्कृत : वयं स्तोकाः, रिपवः बहवः, कातराः एवं भणन्ति।।
मुग्धे! निभालय गगन तलं, कतिजनाः ज्योत्स्नां कुर्वन्ति।।
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