Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 209 श्रोष्यामः संस्कृत के भविष्यत्काल तृतीय पुरुष के बहुवचन का सकर्मक क्रियापद का रूप है। इसके प्राकृत रूप यहाँ पर केवल छह ही दिये गये हैं; जो कि इस प्रकार हैं:- १-सोच्छिमो, २ सोच्छिहिमो, ३ साच्छिस्सामो, ४ सोच्छिहामो, ५ सोच्छिहिस्सा और ६ सोच्छिहित्था। इनमें सूत्र-संख्या ३-१७१ से मूल संस्कृत-धातु 'श्रु' के स्थान पर प्राकृत में भविष्यत्काल के प्रयोगार्थक सोच्छं रूप की आदेश-प्राप्ति; ३-१५७ से प्राप्तांग 'सोच्छ' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर आगे भविष्यत-कालवाचक प्रत्यय का सद्भाव होने के कारण से 'इ' की प्राप्ति; तत्पश्चात् द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ रूपों में सूत्र- संख्या ३-१६६ और ३-१६७ से क्रमशः भविष्यत-कालवाचक प्रत्यय 'हि, स्सा और हा' की प्राप्ति; ३-१७२ से प्रथम रूप में भविष्यत्कालवाचक प्रत्यय 'हि' का अथवा स्सा' और हा' की प्राप्ति; ३-१७२ से प्रथम रूप में भविष्यत्कालवाचक प्रत्यय 'हि' का अथवा 'स्सा' का अथवा 'हा' का वैकल्पिक रूप से लोप; अन्त में सूत्र-संख्या ३-१४४ से उपर्युक्त रीति से भविष्यत्-अर्थ में प्राप्तांग 'सोच्छि, सोच्छिहि, सोच्छिस्सा और सोच्छिहा' में तृतीय पुरुष में बहुवचन के अर्थ में प्राप्तव्य प्रत्यय 'मो' की प्राप्ति होकर क्रम से प्रथम चार रूप 'सोच्छिमो, सोच्छिहिमो, सोच्छिस्सामो
और सोच्छिहामो सिद्ध हो जाते हैं। ___ पाँचवें और छटे रूप 'सोच्छिहिस्सा तथा सोच्छिहित्था में मूल अङ्ग 'सोच्छि' की प्राप्ति उपर्युक्त विधि-विधानों के अनुसार ही होकर सूत्र-संख्या ३-१६८ से भविष्यत्काल के अर्थ में तृतीय पुरुष के बहुवचन के सद्भाव में केवल क्रम से 'हिस्सा तथा हित्था' प्रत्ययों की ही प्राप्ति एवं शेष सभी एतदर्थक प्राप्त प्रत्ययों का अभाव होकर क्रम से पाँचवाँ और छट्ठा रूप 'सोच्छिहिस्सा और सोच्छिहित्था' भी सिद्ध हो जाते हैं। ___ गमिष्यति संस्कृत के भविष्यत्काल प्रथमपुरुष के एकवचन का अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसके प्राकृत-रूप गच्छिइ और गच्छिहिइ होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-१७१ से मूल संस्कृत धातु 'गम्' के स्थान पर प्राकृत में भविष्यत्काल के प्रयोगार्थ 'गच्छ' रूप की आदेश प्राप्ति; ३-१५७ से प्राप्तांग 'गच्छ' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर आगे भविष्यत्कालवाचक प्रत्यय का सद्भाव होने के कारण से 'इ' की प्राप्ति; ३-१६६ से द्वितीय रूप में प्राप्तांग 'गच्छि' में भविष्यत्काल के बोधनार्थ 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति; ३-१७२ से प्रथम-रूप में भविष्यत्काल-बोधक प्राप्त प्रत्यय 'हि' का वैकल्पिक रूप से लोप और ३–१३९ से भविष्यत्काल के अर्थ में क्रम से प्राप्तांग ‘गच्छि' और 'गच्छिहि' में प्रथम-पुरुष के एकवचन के अर्थ में प्राप्तव्य प्रत्यय 'इ' की संप्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप 'गच्छिइ और गच्छिहिइ' सिद्ध हो जाते हैं। ___ गमिष्यन्ति संस्कृत के भविष्यत्काल प्रथमपुरुष के बहुवचन का अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसके प्राकृत रूप गच्छिन्ति और गच्छिहिन्ति होते हैं। इनमें भविष्यत्काल के अर्थ में मूल अंग रूप 'गच्छि और गच्छिहि' की उपर्युक्त एकवचन के अर्थ में प्राप्तांग रूपों के समान ही होकर इनमें सत्र-संख्या ३-१४२ से प्रथमपरुष के बहवचन के अर्थ में प्राप्तव्य प्रत्यय 'न्ति' की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप गच्छिन्ति और गच्छिहिन्ति सिद्ध हो जाते हैं। ___ गमिष्यसि संस्कृत के भविष्यत्काल द्वितीय पुरुष के एकवचन का अकर्मक-क्रियापद का रूप है। इसके प्राकृत रूप गच्छिसि और गच्छिहिसि होते हैं। इनमें भविष्यत्काल-अर्थक अंग रूपों की प्राप्ति प्रथमपुरुष के एकवचन के अर्थ में वर्णित उपर्युक्त सूत्र-संख्या ३-१७१; ३-१५७; ३-१६६ और ३-१७२ से जानना चाहिये; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१४० से भविष्यत्काल के अर्थ में क्रम से प्राप्तांग 'गच्छि और गच्छिहि' में द्वितीय पुरुष के एकवचन के अर्थ में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' की प्राप्ति होकर गच्छिसि और गच्छिहिसि रूप सिद्ध हो जाते है। ___ गमिष्यथ संस्कृत के भविष्यत्काल द्वितीय पुरुष के बहुवचन का अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसके प्राकृत रूप गच्छित्था, गच्छिह, गच्छिहित्था और गच्छिहिह होते हैं। इनमें भविष्यत्काल-द्योतक अंग रूप 'गच्छि और गच्छिहि' की प्राप्ति इसी सूत्र में ऊपर वर्णित प्रथम पुरुष के एकवचन के अर्थ में कथित सूत्र-संख्या-३-१७१, ३-१५७, ३-१६६ और ३-१७२ से जानना चाहिए; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१४३ से भविष्यत्काल के अर्थ में क्रम से प्राप्तांग 'गच्छि और गच्छिहि' में द्वितीय पुरुष के बहुवचन के अर्थ में क्रम से प्राप्त प्रत्यय 'इत्था और ह' की चारों अंगों में प्राप्ति होकर क्रम से चारों रूप गच्छित्था, गच्छिह, गच्छिहित्था और गच्छिहिह सिद्ध हो जाते हैं। इनमें इतनी और विशेषता जानना चाहिये कि
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