Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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242 : प्राकृत व्याकरण ___ अर्थः- 'खुशामद करना-चाटुकारी करना' 'कृ' धातु के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'गुलल' धातु की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे-चाटुकरोति गुललइ-वह खुशामद करता है-वह चाटुकारी करता है। पक्षान्तर में चाडुकरेइ' ऐसा भी होगा।। ४-७३।।
स्मरेझै-झूर-भर-भल-लढ-विम्हर-सुमर-पयर-पम्हुहाः।।४-७४।। स्मरेरेते नवदेशा वा भवन्ति।। झरइ। झूरइ। भरइ। भलइ। लढइ। विम्हरइ। समुरइ। पयरइ। पम्हुहइं सरइ।।
अर्थः- ‘स्मरण करना-याद करना' अर्थक संस्कृत धातु 'स्मर' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से नव धातु रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। वे क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) झर, (२) झूर, (३) भर, (४) भल, (५) लढ (६) विम्हर, (७) सुमर, (८) पयर और (९) पम्हुह। वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में 'स्मर्' के स्थान पर 'सर' रूप की भी प्राप्ति होगी। इनके उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:- स्मरति= (१) झरइ, (२) झूरइ, (३) भरइ, (४) भलइ, (५) लढइ, (६) विम्हरइ, (७) सुमरइ, (८) पयरइ, (९) पम्हुहइ और (१०) सरइ-वह स्मरण करता है अथवा याद करता है; यों दस ही क्रियापदों का एक ही अर्थ होता है।।४-७४।।
विस्मुः पम्हुस-विम्हर-वीसराः ॥४-७५।। विस्मरतेरेते आदेशा भवन्ति। पम्हसइ। विम्हरइ। वीसरइ।।
अर्थः-'भूलना-भूल जाना' अथवा 'विस्मरण करना' अर्थक संस्कृत धातु 'विस्मर' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में तीन धातु की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि इस प्रकार हैं:- (१) पम्हुस, (२) विम्हर और (३) वीसर। इनके उदाहरण इस प्रकार हैं:- विस्मरति पम्हुसइ, विम्हरइ और वीसरइ-वह भूलता है अथवा वह विस्मरण करता है।। ४-७५।।
व्याहगेः कोक्क-पोक्कौ।।४-७६ ।। व्याहरतेरेतावादेशो वा भवतः। कोक्कइ। हस्वत्वे तु कुक्कइ। पोक्कइ। पक्षे। वाहरइ।।
अर्थः- 'बुलाना, आह्वान करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'व्याह' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से दो धातु-रूपों की आदेश प्राप्ति होती है जो कि क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) कोक और पोक्क। सूत्र-संख्या १-८४ से विकल्प से दीर्घ स्वर के स्थान पर आगे संयुक्त व्यंजन होने पर हस्व स्वर की प्राप्ति होती है। अतः 'कोक्क' के स्थान पर 'कुक्क' की भी प्राप्ति हो सकती है, पक्षान्तर में व्याह धातु का 'वाहर' रूप भी प्राप्त होगा।
उक्त चारों धातु-रूपों के उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:- व्याहरति= (१) कोक्कइ, (२) कुक्कइ (३) पोक्कइ और (४) वाहरइ-वह बुलाता है, वह आह्वान करता है ।। ४-७६।।
प्रसरेः पयल्लोवेल्लौ ।।४-७७।। प्रसरतेः पयल्ल उवेल्ल इत्येतावादेशौ वा भवतः।। पयल्लइ। उवेल्लइ। पसरइ।।
अर्थः- 'पसरना, फैलना' अर्थक संस्कृत-धातु 'प्र+सृ' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से दो धातु की आदेश प्राप्ति होती है। वे ये हैं:- (१) पयल्ल और (२) उवेल्ल। पक्षान्तर में 'प्र+सृ' के स्थान पर 'पसर' की भी प्राप्ति होगी। जैसे:- प्रसरति= (१) पयल्लइ (२) उवेल्लइ और (३) पसरइ वह पसरता है अथवा वह फैलता है ।। ४-७७।।
महमहो गन्धे ॥४-७८॥ प्रसरतेर्गन्धविषये महमह इत्यादेशो वा भवति।। महमहइ मालइ। मालइ-गन्धो पसरइ।। गन्ध इति किम्। पसरइ।। अर्थः- 'गन्ध फैलना' इस संपूर्ण अर्थ में प्राकृत भाषा में विकल्प से 'महमह' धातु की आदेश प्राप्ति होती है।
जहां पर 'गन्ध फैलता है ऐसे अर्थ में 'गन्ध' शब्द स्वयमेव विद्यमान हो वहां पर 'महमह' धातु रूप का प्रयोग नहीं किया जा सकता है, किन्तु 'पसर' धातु रूप का ही प्रयोग किया जा सकेगा। इसलिए वृत्ति में 'गन्ध इतिकिम् गन्ध ऐसा
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